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वर्षों पश्चात् आजू-बाजू में रहने वाले जैन बंधुवों को प्राचीन जैन प्रतिमा यहाँ रहने का पता चला । कुछ घर भी बसे । भीमावरम आदि आजू-बाजू के गांव वाले प्रतिमा अपने वहाँ ले जाकर मन्दिर बनवाना चाहते थे । परन्तु ग्राम वासियों की प्रबल इच्छानुसार यहीं मन्दिर बनवाने का निर्णय लिया व मन्दिर का नव निर्माण करवाकर विक्रम सं. 2021 माघ शुक्ला 8 के शुभ दिन परम-पूज्य मुनि श्री नन्दनविजयजी महाराज के सान्निध्य में हर्षोल्लास पूर्वक प्रतिष्ठित करवाई गई । प्रतिमा पर कोई लंछन नहीं रहने के कारण भगवान विमलनाथ नाम सम्बोधित किया गया जो पूर्व प्रकाशित तीर्थ-दर्शन में दर्शाया है । पश्चात् यात्रिओं का आवागमन भी काफी बढ़ा जैन परिवार भी कुछ बसे । वि. सं. 2036 में पन्यास प्रवर श्री भद्रानन्दजी गणीवर्य का यहाँ चातुर्मास हुवा । इस चातुर्मास में भीमावरम संघ ने पूर्ण भाग लिया । यात्रियों का
आवागमन बढ़ने के कारण पुनः जीर्णोद्धार की आवश्यकता मन्दिर का बाह्य दृश्य-पेदमीरम्
महशूश होने लगी अतः भव्य रुप से पुनः जीर्णोद्धार करवाकर वि. सं. 2037 में पन्यास प्रवर श्री भद्रानन्दजी गणीवर्य की सानिध्यता में पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । प्रभु प्रतिमा जटायुक्त रहने के कारण सभी को महसूस हो रहा था कि यह प्राचीन प्रतिमा श्री आदिनाथ
भगवान की ही है, अतः प्रतिष्ठा के पूर्व ही विजया तीर्थाधिराज * श्री आदिनाथ भगवान, श्याम दशमी के शुभ दिन शुभ मुहुर्त में नाम करण विधि के वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 118 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। साथ तीर्थाधिराज भगवंत को हर्षोल्लासपूर्वक श्री आदिनाथ तीर्थ स्थल * पेदमीरम गाँव के मध्य ।
भगवान सम्बोधित किया जो अभी विद्यमान है । प्राचीनता * प्रभु प्रतिमा के प्राचीनता का पता
विशिष्टता * इतनी प्राचीन प्रतिमा यहाँ के भूगर्भ लगाना कठिन है । प्रतिमा की कलाकृति से लगभग
से प्राप्त होना प्रमाणित करता है कि किसी समय यह दो हजार वर्षों से ज्यादा प्राचीन मानी जाती है। एक विराट नगरी रही होगी व वैभव सम्पन्न जैनियों का संभवतः वजस्वामीजी द्वारा पूर्व प्रतिष्ठित हो । यह यहाँ निवास रहा होगा । इसके अन्वेशण की आवश्यकता भव्य प्रतिमा लगभग 80 वर्ष पूर्व जमीन खोदती वक्त
है । भूगर्भ से प्रतिमा प्रकट होने के पश्चात् अभी तक यहाँ के ग्रामवासियों को भूगर्भ से प्राप्त हुई थी उस अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएं घटते आने का वक्त यहाँ जैनियों का कोई घर नहीं था । ग्राम उल्लेख है । वासियों ने प्रतिमा की महिमा नहीं समझकर प्रभु प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है तब प्रतिमा को इधर-उधर रखा व गाँव में अशांती फैलने हजारों यात्रीगण इकट्ठे होकर प्रभु भक्ति का लगी । ग्राम वासियों को महसूस होते ही प्रभु प्रतिमा लाभ लेते हैं । को बाजों गाजों के साथ अच्छी जगह विराजमान कर अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई निरन्तर पूजा-अर्चना अपने ढंग से करने लगे जिससे मन्दिर नहीं हैं । पुनः गांव में शांती का वातावरण छाया व निरन्तर उन्नति कला और सौन्दर्य * प्रभु प्रतिमा की कला होने लगी ।
विशेष आकर्षक है । 154
श्री पेदमीरम् तीर्थ