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श्री गुड़िवाड़ा तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, अर्द्ध-पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * गुड़िवाड़ा गाँव के मध्य ।
प्राचीनता * प्रभु-प्रतिमा की कलाकृति के अवलोकन मात्र से यहाँ की प्राचीनता का अनुमान हो जाता है । प्रतिमा लगभग वि. के आठवीं सदी की मानी जाती है । प्रतिमा की प्राचीनता से यह सिद्ध होता है
विशिष्ट कलात्मक पार्श्वप्रभु प्रतिमा
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं हैं । __ कला और सौन्दर्य * प्रभु-प्रतिमा की कला अति ही सुन्दर निराले ढंग की है । प्रतिमा के दर्शन करते ही ऐसा लगता है मानों श्री धरणेन्द्र देव साक्षात प्रकट होकर प्रभु पर अपने फण फैलाकर छत्र कर रहे हैं । कलाकार ने अपनी पूरी शक्ति इस प्रतिमा के निर्माण
में लगाकर विशिष्ट कला का नमूना प्रस्तुत किया बाह्य दृश्य-गुडिवाड़ा
है । इसी मन्दिर में एक और श्री पार्श्व-प्रभु की प्राचीन प्रतिमा है, जिसकी कला भी विशिष्ट है ।
मार्ग दर्शन 8 यहाँ का रेल्वे स्टेशन गुड़िवाड़ा कि किसी जमाने में यहाँ जैन धर्म अत्यन्त जाहोजलालीपूर्ण
लगभग 12 कि. मी. है । विजयवाड़ा -मसूलिपटनम रहा होगा व सुसंपन्न श्रावकों के अनेकों परिवार यहाँ
मार्ग में यह तीर्थ स्थित है । यहाँ से विजयवाड़ा रहते होंगे । पहिले यह प्रतिमा दूसरे स्थान पर थी,
लगभग 40 कि. मी. दूर है । जिसे इस नवीन मन्दिर का निर्माण करवाकर यहाँ पुनः
एँ * ठहरने के लिए धर्मशाला व हाल है। प्रतिष्ठित करवाया गया ।
जहाँ पर बिजली, पानी, बर्तन व ओढ़ने-बिछाने के विशिष्टता इस प्रतिमा की कलात्मकता व प्राचीनता वस्त्रों की सुविधाएँ उपलब्ध है । ही यहाँ की विशिष्टता है । प्रतिवर्ष पौष कृष्णा 10 के पेढ़ी * श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर संघ, दिन मेला भरता है । यहाँ के प्रतिमाओं की कला देखते जैन टेम्पल स्ट्रीट, पोस्ट : गुड़िवाड़ा - 521 301. ही कुलपाकजी, अंतरिक्षजी, भान्दकजी, दर्भावती आदि जिला : कृष्णा, प्रान्त : आन्ध्रप्रदेश, का स्मरण हो आता है ।
फोन : पी.पी. 08674-44291,44266,42701 152
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