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बाह्य सुन्दर दृश्य-कुलपाक
श्री कुलपाकजी तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री आदीश्वर भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 105 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * आलेर से लगभग 6 कि. मी. दूर कुलपाक गांव के बाहर विशाल परकोटे के बीच ।
प्राचीनता * श्री आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा श्री माणिक्यस्वामी के नाम से प्रख्यात है । प्रतिमा अति ही प्राचीन है । एक किंवदन्ति है कि श्री आदिनाथ प्रभु के पुत्र श्री भरत चक्रवर्तीजी ने अष्टापद पर्वत पर चौबीस भगवान की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाई थी उस समय एक प्रतिमा अपने अंगूठी में जड़े नीलम से भी बनवाई थी वही यह प्रतिमा है । कहा जाता है राजा रावण को दैविक आराधना से यह प्रतिमा प्राप्त हई थी जिसे उसने अपनी पट्टरानी मन्दोदरी को दी थी । कई 148
काल तक यह प्रतिमा लंका में रही व लंका का पतन होने पर यह प्रतिमा अधिष्ठायक देव ने समुद्र में सुरक्षित की ।
श्री अधिष्ठायक देव की आराधना करने पर विक्रम सं. 680 में श्री शंकर-राजा को यह प्रतिमा प्राप्त हुई जिसे मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठित करवाया गया ।
यहाँ पर सं. 1333 का एक शिलालेख है जिसमें इस तीर्थ का व माणिक्यस्वामी की प्रतिमा का उल्लेख है । सं. 1481 के उपलब्ध शिलालेख में तपागच्छाधिराज भट्टारक श्री रत्नसिंहसूरिजी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेताम्बर संघ द्वारा जीर्णोद्धार हुए का उल्लेख है । सं. 1665 के शिलालेख में आचार्य श्री विजयसेनसूरीश्वरजी का नाम उत्कीर्ण है । सं. 1767 चैत्र शुक्ला 10 के दिन पंडित श्री केशरकुशलगणीजी के सान्निध्य में श्री हैदराबाद के श्रावकों द्वारा जीर्णोद्धार हुए का उल्लेख है । उक्त समय दिल्ली के बादशाह