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हैं । वर्तमान बटेश्वर भी इसी नगरी का अंग था। जब महावीर यहाँ पधारे तब यहाँ सोर्यदत्त नाम का राजा राज्य करता था-ऐसा उल्लेख है ।
आचार्य श्री बप्पभट्टसूरीश्वरजी द्वारा मथुरा में उद्धार करवाते वक्त सौरीपुर में भी उद्धार करवाने का उल्लेख है । आचार्य श्री विमलचन्द्रसूरीश्वरजी, श्री उद्योतनसूरिजी, श्री नेमिचन्द्रसूरिजी, श्री देवेन्द्रसूरिजी आदि अनेकों प्रकाण्ड आचार्यगण यहाँ यात्रार्थ पधारे थे ।
चौदहवीं सदी में आचार्य श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में यहाँ शंख राजा द्वारा उद्धार कराये गये जिनालय में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा रहने का उल्लेख है ।
श्री हीरसौभाग्य' महाकाव्य के रचनाकार श्री सिंहविमलगणी के पिता संघवी श्री सेहिल द्वारा सतरहवीं शताब्दी में श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा भरवाने का उल्लेख है, जिसकी अंजनशलाका व प्रतिष्ठा विक्रम सं. 1640 में आचार्य श्री विजयहीरसूरीश्वरजी के सुहस्ते हुई । सं. 1662 में आचार्य श्री विजयसूरीश्वरजी के शिष्य उपाध्याय कल्याणविजयजी व उनके शिष्य श्री जयविजयजी यात्रार्थ पधारें । तब यहाँ 7 श्वेताम्बर मन्दिर रहेने का उल्लेख है ।
उसके पश्चात् भी अनेकों आचार्यों व मुनि महाराजों का यहाँ पदार्पण हुआ व अनेकों संघ यात्रार्थ आये ।
दिगम्बर मान्यतानुसार भी भगवान नेमिनाथ के च्यवन व जन्म कल्याणक यहाँ हुए, परन्तु भगवान का जन्म वैशाख शुक्ला 13 के दिन चित्रा नक्षत्र में हुआ माना जाता है ।
यादवकुलतिलक भगवान श्री नेमिनाथ के इन दो कल्याणकों के अतिरिक्त यहाँ पर कई अन्य मुनियों को केवलज्ञान व निर्वाण हुआ माना जाने के कारण यह परम पवित्र पावन तीर्थ है ।
विशिष्टता * वर्तमान चौवीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान के च्यवन व जन्म कल्याणक इस पवित्र पावन भूमि में होने के कारण यहाँ की महान विशेषता है ।।
चरम तीर्थंकर भगवान महावीर का भी यहाँ पदार्पण हुआ था । कहा जाता है यहाँ सौर्यावंतसक उद्यान में भगवान महावीर ने एक माछीमार को उसके पूर्व जन्म का वृत्तान्त बताकर प्रतिबोधित किया था ।
दिगम्बर शास्त्रानुसार श्री आदीश्वर भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान व श्री महावीर भगवान के पावन विहार से भी यह भूमि पावन बनी है ।
श्री सुप्रतिष्ट, श्री धान्यकुमार, श्री अलसतकुमार आदि महामुनियों की यह तपोभूमि व निर्वाण-भूमि है। भगवान महावीर के समय यम नामक एक अन्तः कृत केवली यहीं से मोक्ष सिधारे । दिगम्बर विद्वान आचार्य श्री प्रभाचन्द्रजी के गुरु आचार्य श्री लोकचन्द्रजी यहीं हुए । आचार्य श्री प्रभाचन्द्रजी ने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “प्रमेयकमलमार्तण्ड' की रचना यहीं की थी । दानी कर्ण की भी यह जन्म भूमि है ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इन दिगम्बर व श्वेताम्बर दो मन्दिरों के अतिरिक्त कोई मन्दिर नहीं है। बटेश्वर में एक दिगम्बर मन्दिर है ।
कला और सौन्दर्य * यहाँ ध्वंसावशेषों में से अनेकों प्राचीन वस्तुएँ प्राप्त हुई है । सर कनिंगहम् ने यहाँ टेकरियों में अनेक प्राचीन अवशेष, खण्डहर मन्दिर आदि होने का संकेत किया है ।
यहाँ से अनेक प्राचीन शिलालेख, प्रतिमाएँ, ताम्र-सिक्के आदि वि. सं. 1870 में आगरा ले जाने का उल्लेख है। अगर शोध-कार्य किया जाय तो अभी भी इन
श्री नेमिनाथ जिनालय (दि.) सौरीपुर
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