________________
श्री भेलुपुर तीर्थ
तीर्थाधिराज * 1. श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, लगभग 60 सें. मी.। (श्वेताम्बर मन्दिर) प्राचीन मूलनायक ।
2. श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 75 सें. मी.। (दिगम्बर मन्दिर)।
तीर्थ स्थल * बनारस शहर के भेलूपुर मोहल्ले में विजयनगरम पेलेस के पास।
प्राचीनता * इस नगरी के वाराणसी व काशी नाम प्राचीन काल से आज तक जन साधारण में प्रचलित हैं । यहाँ का इतिहास युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान के समय से प्रारम्भ हो जाता है । काशी के नरेश अकम्पन की पुत्री सुलोचना का यहीं पर स्वयंवर रचा गया था । सुलोचना ने भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति जयकुमार (बाहुबली के पौत्र) को स्वयंवर के समय गले में वरमाला डालकर पति के रूप में स्वीकार किया था ।
इस नगरी के इक्षवाकु वंशीय राजा अश्वसेन की रानी वामादेवी ने चैत्र कृष्ण चतुर्थी की रात्री में तीर्थंकर-जन्म-सूचक महा-स्वप्न देखे । उसी क्षण भरुभूति का जीव पिछले नव भव पूर्ण करके वामा माता की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ । गर्भ काल पूर्ण होने पर पौष कृष्णा दशमी के दिन अनुराधा नक्षत्र में सर्प-लक्षण वाले पुत्र को वामा माता ने जन्म दिया । इन्द्रादि देवों ने प्रभु का जन्म कल्याणक अति उल्लासपूर्वक मनाया। राज दरबार में भी बधाइयाँ बँटने लगीं । प्रभु का नाम पार्श्वकुमार रखा गया ।
बाल्यावस्था पूर्ण होने पर राजा प्रसेनजित की पुत्री प्रभावती के साथ उनकी शादी हुई । राजकुमार पार्श्व ने एक दिन एक तपस्वी को धूनी लगाकर पंचाग्नि तप करते देखा ।
राजकुमार पार्श्व को अवधिज्ञान से मालूम पड़ा कि जलते लकड़े में सर्प-सर्पिणी तड़प रहे हैं । तुरन्त लकड़े को चीरकर सर्प-सर्पिणी को निकाला व नवकार महामंत्र सुनाया । वे मरकर नवकार मंत्र के प्रभाव से धरणेन्द्र, पद्मावती नाम के देव हुए ।
श्री पार्श्वनाथ जिनालयों का दृश्य भेलुपुर-बनारस
105