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________________ श्री भदैनी तीर्थ कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ है । इसलिए इस स्थान की अपूर्व महानता है। भक्तगण अपने दुर्लभ मानव भव में इस पावन स्थल को स्पर्श करने का अमूल्य अवसर न चूकें । ऐसे पुण्य स्थलों के स्पर्श मात्र से आत्मा को शान्ति का अनुभव होता है । तीर्थाधिराज * 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 68 सें. मी.। (श्वेताम्बर मन्दिर) । 2. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 46 सें. मी.। (दिगम्बर मन्दिर)। तीर्थ स्थल * भेलपुर (वाराणसी) से 1.5 कि. मी. दूर गंगा नदी तट पर, जिसे जैन घाट कहते हैं । प्राचीनता * यह स्थल वाराणसी का एक अंग है। वाराणसी को प्राचीन काल से काशी भी कहते हैं। इस नगरी का इतिहास श्री ऋषभदेव भगवान के काल से प्रारम्भ हो जाता है । उस समय का कुछ इतिहास भेलपुर तीर्थ में दिया जा चुका है । प्रबल पुण्य योग से जब नन्दिषेण का जीव पूर्व के दो भवपूर्ण करके भाद्रवा कृष्णाअष्टमी के शुभ दिन अनुराधा नक्षत्र में यहाँ के इक्ष्वाकु वंशी राजा प्रतिष्ठा की रानी पृथ्वी की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ तब उसी क्षण पृथ्वी रानी ने तीर्थंकर जन्म सूचक महा-स्वप्न देखे । गर्भ काल पूर्ण होने पर पृथ्वी देवी ने स्वस्तिक लक्षण युक्त पुत्र को जन्म दिया । इन्द्रादि देवों ने प्रभु का जन्म कल्याणक मनाया । बाल्यावस्था पूर्ण होने पर शादी की गई व राज्य भार संभाला । राज्य कार्य करते हुए एक दिन दीक्षा लेने की भावना जाग्रत हुई । प्रभु ने वर्षीदान देकर यहाँ के सहसाम्रवन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की । नव मास तक बिहार करते हुए इसी वन में पुनः आकर सरीस वृक्ष के नीचे ध्यानावस्था में रहे व ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षय होने पर उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ । इन्द्रादिदेवों द्वारा समवसरण की रचना की गई । __ इस प्रकार वर्तमान चौबीसी के सातवें तीर्थकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के चार कल्याणक होने का सौभाग्य इस भूमि को प्राप्त हुआ है । प्रभु की कल्याणक भूमि होने के कारण यहाँ अनेकों मन्दिरों का निर्माण हुआ होगा । आज यहाँ सिर्फ ये ही दो मन्दिर हैं जो पूर्व इतिहास की याद दिलाते हैं । विशिष्टता * वर्तमान चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान श्री सुपार्श्वनाथ जिनालय (वे.) - भदैनी अन्य मन्दिर * इन मन्दिरों के अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ कोई मन्दिर नहीं हैं । कला और सौन्दर्य * गंगा नदी के तट पर इन मन्दिरों का दृश्य अति ही शोभायमान लगता है । अति ही शांत वातावरण में कल-कल बहती हुई नदी भी अपनी मन्द मधुर आवाज से मानों प्रभु का नाम निरन्तर स्मरण कर रही हो-ऐसा प्रतीत होता है । मार्ग दर्शन * वाराणासी रेल्वे स्टेशन यहाँ से लगभग 4 कि. मी. है, जहाँ से टेक्सी व रिक्शों की सुविधा है । मन्दिरों से लगभग 100 मीटर दूरी तक कार व बस जा सकती है । 103
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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