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आगम कृति परिचय
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स्वरूप पे. | कर्ता
संवत् | कृति विशेषनाम*भाषा*गद्य-पद्य*परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. 284 टीका (2) अभयदेवसूरि, वि. 1120 | 'प्रदेश टीका' * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति श्लोक-12 कृतिसंशो.-द्रोणाचार्य
ग्रं.3800 {नत्वा श्रीमन्महावीरं, प्रायोऽन्यग्रन्थवीक्षितः।... वरपरिवर्जितेति, शेष सूत्रसिद्धम्।।) (317, 318, 323, 331,
335, 336, 353, 152438) 285 बा.बो. (3) अज्ञात
(मा.गु.) * गद्य * (श्रु. 2) {प्रणम्य श्री महावीरं...अंग संपूर्ण
थयो।} {317) 286 सज्झाय (4) | 1 मेघराज उपाध्याय वि. 1655 'श्र.1 के प्रत्येक अध्ययन की' * (गु.) * पद्य - सज्झाय 19
ग्रं.501 {वीर जिणेसर वंदं...पुंडरीक सज्झायम्। 1911) {1756,
1784} 287 2 | प्रीतिविजयजी
वि. 1721 'श्रु.1 के प्रत्येक अध्ययन की' * (मा.गु.) * पद्य * सज्झाय 19,
कळश 17 {श्री श्रुतदेवी नमी...गाथा सोहे विसाल।।1711)
{1784) 3 रामविजयजी
वि. 1766 |नंद मणियार की सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 31
सर्वगाथा 37 (स्वस्ति श्री कमला...वरशे रे।।9।।)
{1784} राजरत्न उपाध्याय वि. 1729# | 'श्रु. 1 के प्रत्येक अध्ययन की' * (मा.गु.) * पद्य * सज्झाय
19 {छटे अंगे जिनवर...जयकार रे (मनशुद्धि०) ।।9।।)
{1784) 290 5 | रायचंदजी
वि. 1797 थावच्चा (कुमार) मुनि की सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 41
सर्वगाथा 54, कळश 1 {द्वारामती नगरी वसे...कुमारनुं
चोढालीयु संपूर्ण} {1768, 1784) 6 | रायचंद मुनि
वि. 1836# | पुंडरीक कंडरीक की सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 4 /
सर्वगाथा 62 (तेणे काळे तेणे...आगम वयण प्रमाण।।1211)
{1784) 292 7 | खोडाजीऋषि
वि. 19182 | शीयल विशे स्त्रीने शिखामणनी सज्झाय * (गु.) * पद्य * गाथा
17 {निसुणो सकल सोहागण...जोडी ऋषि खोडीदासे।।1711)
{1784} 293 अर्वा. टीका | | घासीलालजी महाराज वि. 2004 'अनगारधर्मामृतवर्षिणी' * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति
श्लोक-5 {श्री सिद्धराजं स्थिरसिद्धिराज्यप्रदं...द्वितीयः श्रुत
स्कन्धः समाप्तः।। {339} 294 शब्द.,अनु.
छगनलालजी शास्त्री डॉ., | वि. 2036# | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 2) {351)
महेन्द्रकुमार रांकावत डॉ. 295 अनु. (7) 1 अमोलकऋषि
वि. 1975P (हिं.) * गद्य * (श्रु. 2) (319) 296
2 | Banarsidas Jain |वि. 1979P | (अं.) * गद्य * (श्रु.1→अ. 1) {1548} | जेठालाल हरिभाई शास्त्री |वि. 1985P (गु.) * गद्य * (श्रु. 2) {ते काळने विषे...ज्ञाताधर्मकथाओ
समाप्त थइ.} {320) 298 शोभाचंद्रजी भारिल्ल
'स्पष्टीकरणयुक्त' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 2) {326,
1443) 299
| प्यारचंद्रजी उपाध्याय | वि. 2033P (हिं.) * गद्य * (श्रु.1→अ. 9) {333} 6 वनिताबाई महासतीजी वि. 2037P (गु.) * गद्य * (श्रु. 2) {334}
(विनय)
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