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आगम कृति परिचय
संवत् कृति विशेषनाम*भाषा*गद्य-पद्य परिमाण* आदि-अंत प्र.क्र.
क्र. स्वरूप
पे. कर्ता
मूल (1)
1. आचारांगसूत्र (1-77) सुधर्मास्वामीजी (पंचम | वी.सं. पूर्व (प्रा.) * गद्य, पद्य * श्रु. 2→चू. 0+4→अ. 9+16→उ. गणधर भगवंत)
त्रीश वर्ष
(7+6...:) 51+ (11+3....3) 25→सूत्र 323+481 ग्रं.2644 वैशाख {सुयं मे आउसं...कलंकलीभावपवंच विमुच्चति।। त्ति सुद 11 बेमि।। ग्रन्थाग्र 264411} {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 11,
12, 13, 16, 18, 20, 21, 22, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 32, 33, 34,35, 37, 38, 39, 41,45,46, 47,48, 49, 50, 53, 54,55, 56, 57,59, 61, 62, 63, 64,65, 67, 68, 70, 72, 74,75,76,77,78,80, 81,85,87,88,89,90,91,92, 94, 95, 96, 97, 98, 1349, 1359, 1367, 1377, 1382, 1393, 1408, 1477, 1506,1510,1548%D82)
2 नियुक्ति (2)
भद्रबाहुस्वामी
वीरसदी दूसरी
3
चूर्णि (3)
जिनदासगणिजी महत्तर |
| वि. 7332
टीका (4)
1 शीलांकाचार्य
वि.925#
(प्रा.) * पद्य * गाथा 356 ग्रं.450 {वंदित्तु सव्वसिद्धे जिणे... इक्कसरा हुंति अज्झयणा।।35611) {1,6,7, 11, 12, 13, 62, 67,75,87, 89,90,91,94,95,96,97, 1506, 1510, 1512, 1525D21) मूल और नियुक्ति की चूर्णि * (प्रा., सं.) * गद्य * (श्रु. 2) ग्रं.8300 (मंगलादीणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि...स्थिती, शेषं तदेव।।} {15, 86, 96} मूल और नियुक्ति की टीका * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2) (नि.गा. 349), प्रशस्ति श्लोक-4 ग्रं.12000 {जयति समस्तवस्तुपर्यायविचारापास्ततीर्थिकं, विहितैकैकतीर्थनयवादसमूहवशात्प्रतिष्ठितम्।...श्रीमदाचाराङ्गविवरणं श्रीशीलाङ्काचार्यायं समाप्तम्।} {1, 6, 12, 13, 62, 67, 87, 89, 90, 91, 94, 95, 97, 1506=14) 'प्रदीपिका टीका' * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति श्लोक-15 ग्रं.9500 {शासनाधीश्वरो जीयाद् वर्धमानो... धर्मो (तु ?) सफला (लः) ।।15।।} {1, 49) शीलांकी टीका आधारित दीपिका टीका * (सं.) * गद्य * (श्रु. 1) {वर्द्धमानजिनो जीयाद्, भव्यानां...निर्यातमवधारितमिति, उपधानश्रुताध्ययनस्य चतुर्थोद्देशकः।) {16, 48, 92}
वि. 1573
| जिनहंससूरि, कृतिसंशो.-भक्तिलाभ
उपाध्याय 3 अजितदेवसूरि
वि. 1629
7 बा.बो. (5) । | पार्श्वचंद्रसूरि
वि. 1554#
(मा.गु.) * गद्य * (श्रु. 2) {प्रणम्य श्रीजीनाधीशं श्रीगुरुणा
मनुग्रहात्।...वाच्यमानोऽयं चिरं नंद्यात्।) (1,85) 8 सज्झाय (6) |1| कांतिविजयजी
वि. 1723# पांच महाव्रतनी सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 5/ सर्वगाथा 31
{सकल मनोरथ पूरवे (णो)...भणतां सुख लहे।।6।।} {1757,
1781, 1784} 2 | जसविजयजी
| वि. 1784# पांचमहाव्रत-तेनी 25 भावनानी सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल
5/ सर्वगाथा 34 {महाव्रत पहेलुं रे...वाधे सेवतां पाया।1711)
{1757, 1784} 3 गंभीरविजयजी पंडित वि. 1952# (गु.) * पद्य * गाथा 7 (वीर भाषित सोहम...वरमाल तस।
पहेरावे. वीर.} {49} 11 छाया (7) | 1 | आत्मारामजी आचार्य वि. 1989# | (सं.) * गद्य * (श्रु. 2) {26, 76} * संकेत : क्र.=कृति क्रमांक, पे. स्वरूपगत पेटाक्रमांक, आदि-अंत आदि वाक्य - अंत वाक्य, प्र.क्र. प्रकाशन क्रमांक