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आणंदजी कल्याणजी पेढी के अध्यक्ष .
श्री संवेगभाई के उद्गार
श्रमण भगवान महावीरस्वामी ने वैशाख शुक्ला 11 के दिन धर्मतीर्थ की स्थापना की एवं बीजबुद्धि गणधर भगवंतों को 'उपनेई वा विगमेई वा धुवेई वा' - त्रिपदी प्रदान की और गणधर भगवंतों ने इस त्रिपदी के आधार पर द्वादशांगी की रचना की । कालक्रम से अनेक प्रत्येकबुद्ध, समर्थ ज्ञानी स्थविर आचार्य भगवंतों ने इस श्रुत प्रवाह को अखंड रूप से आगे बढाया । आज हमें उपलब्ध जिन आगम जैन शासन की अमूल्य धरोहर है ।। - भवभीरु आचार्य भगवंत, शासन समर्पित ज्ञानी पंडित पुरुषों के द्वारा संपादित, विवेचित और तैयार हुए बहुमूल्य ग्रंथों का प्रकाशन 'गीतार्थ गंगा' संस्था के द्वारा हो रहा है । श्रुतज्ञान की विरासत को सुव्यवस्थितरूप से संरक्षित करने का जो भगीरथ कार्य किया जा रहा है यह अनुमोदनीय है ।
इसी सिलसिले में संशोधन की आधुनिक तकनीक के द्वारा तैयार हुई 'आगम प्रकाशनसूचि' का प्रकाशन हो रहा है यह आनंद का विषय है । प्रस्तुत प्रकाशनकार्य में लाभ प्राप्त करने का मौका आणंदजी कल्याणजी को प्राप्त हुआ यह विशेष अनुमोदना का कारण है । ऐसे ज्ञानयज्ञ में यत्किंचित् योगदान देने का जो लाभ पेढी को मिलता है वह उसका सद्भाग्य है । पेढी हमेशा श्रुतसंरक्षण एवं श्रुतसंवर्धन की प्रवृत्ति में भक्तिभाव से सहयोगी बनती रही है ।
प्रस्तुत 'आगम प्रकाशनसूचि' इस विषय के अभ्यासी, निष्णात, विवेचक, संशोधक, स्वाध्यायरसिक सभी को उपयोगी बनेगी ऐसी मेरी श्रद्धा है ।
आज सम्यक् श्रुत के प्रचार-प्रसार उपरांत उसका संरक्षण हो यह आवश्यक है । परमपूज्य ज्ञानीध्यानी श्रमण-श्रमणी भगवंतों के अलावा श्रीसंघ के श्रावक-श्राविका, भाई-बहनों में भी परमात्मा जिनेश्वरदेव की वाणी के स्वाध्याय-हेतु आकर्षण एवं उत्साह बढे, एवं वे सभी स्वाध्याय में जुडे, यह अति आवश्यक है।
गीतार्थ गंगा संस्था के द्वारा संकलन/संपादन एवं संशोधन की सूक्ष्म वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा सर्जित यह श्रुतसंपदा सभी के लिए उपकारक सिद्ध होगी तथा मोक्षमार्ग के प्रति रुचि जगाएगी ऐसी . सद्भावना के साथ समापन करता हूँ ।
संवेग लालभाई
अध्यक्ष शेठ आणंदजी कल्याणजी