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मण्डल
कुशलवक्ता - ओजस्वी, प्रेरकवक्ता, कुशल तत्त्व वेत्ता। विहार क्षेत्र
गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, म.प्र., आ.प्र., कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पाण्डिचेरी
आदि । वैराग्यकाल प्रवृत्ति - चार वर्ष के वैराग्यकाल में शिक्षण के साथ अध्ययन किया एवं प्रवचन देने
जाते थे । कुन्नूर, हुबली, खड़गपुर, मालेगांव पधारे थे । उग्र विहारी ५० हजार से अधिक किलोमीटर का पैदल विहार कर चुके हैं तथा एक
दिन में ३०-४०-५०कि.मी. से अधिक भी विहार कर लेते हैं। निमन्त्रण - अन्य संप्रदायों के निमंत्रण प्रमुख (१) दरियापुरी संप्रदाय (२) आचार्य
सुशीलमुनिजी (३) नानक संप्रदाय (४) श्रमण संघ आदि। सामायिक एवं स्वाध्याय मंडलों की जगह - जगह स्थापना की है, जो
केवल सामायिक एवं स्वाध्यायही करते हैं। सान्निध्य पूज्य गुरूदेव तपस्वीराज की सेवा में दो वर्ष तक, विशेष सान्निध्य पांच वर्ष
का पूज्य महात्माजी जयंतीलालजी म.सा. की सेवा में रहे, वे दिन मुनिराज अपने संयमी जीवन की विशेष उपलब्धि मानते हैं। ज्ञान गच्छीय परम्परा से प्रथम दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व पान्डिचेरी क्षेत्र का स्पर्श कर नये क्षेत्र
खोले हैं। । विशेष गुण - क्रियानिष्ठ एवं सदैव अप्रमत्तता एवं जागरूकता से संयम जीवन का पालन
कर रहे हैं। | प्रकाशित साहित्य - विनय बोधि कण भाग (पृथक) १-२-३-४, विनय बोधि कण (संयुक्त)
भाग १-४, विनय बोधि कण ११-१२, विनय बोधि कण (संयुक्त) भाग ५-६-७-१३, विनय भावना, विनय आराधना, विनय प्रभावना और हस्त लिखित -कुल १,३१,००० पुस्तकें प्रकाशित हुई है , जो सभी बिना मूल्य वितरण की गई और वितरण की जाती है।
समस्त विनय बोधि-कण परिवार दिल्ली, बैंगलोर, इंदौर, रायपुर, ईरोड, मैसूर, कोयम्बतुर, मदुरान्तकम्,
पांडिचेरी, कून्नूर, कोचीन, चेन्नई एवं ऊटी
| नये क्षेत्र