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35) मग्गं बुद्धेहिं देसियं...| मोक्ष मार्ग तीर्थंकर | कंदर्प, अभियोगी, किल्विषी, मोह व आसुरी भावना भगवान द्वारा कहा गया है।
वाले साधुदुर्गति को जाते है। शील नाशक कुचेष्टाएं, . मणोहरं चित्तघरं ... मणसा विण पत्थए ।
हास्य, साता रस ऋद्धि की इच्छा से मंत्र योग,
भूतिकर्म, केवली भगवान के ज्ञान धर्म के सम्यग सजे हुए स्थानों की मुनि मन से भी इच्छा न करे ।
पालकों की निंदा, निरंतर रोष निमित्त कथन, मोहवश ण सयं गिहाई कुविजा...
आत्महत्या, अनाचार, उत्पादक, उपकरण रखनेवाले जीवों की हिंसा के कारण मुनि घर न बनाएँ न मुनि, विराधक होकर दुगर्ति को जाते है । बनवाएं । णत्थि जोइसमे सत्थे.. ॥
जिण वयणे अणुस्ता, जिण वयणं जे करेंति भावेणं । अग्नि से बढ़कर शस्त्र नहीं, इसलिए मुनि अग्नि
अमला असंकिलिट्ठा ते होति पस्ति संसारी ।। वाला कोई कार्य न करें न करवाएं । 'इत्थीहिं अणभिददुए' स्त्रिओं के उपद्रव व बार-बार आवागमन
|| इति ।। से रहित स्थान में मुनि रहने का संकल्प करे? | जिन वचनों में अनुरक्त, जिन वचनानुसार भाव णिमम्मे निरहंकारे...संपतो केवलं णाणं... ।। |
सहित प्रवृति करने वाले अमल, असंक्लिष्ट बनकर ममत्व रहित अहंकार रहित मुनि केवल ज्ञान प्राप्त परित संसारी होते हैं। करके सदा के लिए मुवन्त हो जाते
नोट : जिनाज्ञा के विपरीत अंश मात्र भी प्ररुपणा
की गई हो तो मिच्छामि दुक्कडम् । (तत्व केवली 36) कंदप्पमामिओगं च, किनिसियं मोह मासु रतं । | गम्य) एयाउ दुग्गईओ, मरणंमि विराहिया होति ।।
तीन मनोरथ वह दिन महान कल्याणकारी होगा, जिस दिन मैं अल्प या अधिक परिग्रह का त्याग करूँगा।
वह शुभ समय कब आयेगा, जिस दिन मैं गृहस्थावास को छोड़कर पंचमहाव्रत
धारण करके साधुजीवन को स्वीकार करूंगा।
वह दिन धन्य होगा, जब मैं अंत समय में संथारा संल्लेखना स्वीकार करके पंडितमरण को प्राप्त करूँगा।
* * * * आहार शरीर उपधि, पच्चक्नु पाप अठार मरण पाऊँ तो वोसिरे, जीऊँ तो आगार।।