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॥ श्री महावीराय नम ॥ जिनशासन की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करनी है ।
बड़ी - बड़ी तपस्याओं की आराधना करने से पहले, घर - घर में रात्रि भोजन त्याग'व्रत धारण करावे। यह व्रत जैन धर्म व जिनशासन की 'आन - बान - शान रूप है । रात्रि भोजन त्याग जैनियों की प्रथम पहचान थी,
इस पावन व्रत की सुरक्षा (धारण) में ही
हमारी सामूहिक सुरक्षा छिपी है । आत्म स्वस्थता व शरीर स्वस्थता की प्राप्ति होगी।
हम सभी अपनी खोई प्रतिष्ठा की पुन: प्रतिस्थापना करे ।
अहिंसा धर्म का प्रथम सोपान हैं।
श्रावक को त्रस व स्थावर जीवों पर दया करना ही हमारा परम कर्तव्य हैं,
भाग्यशालियो ! इतिहास गौरव से आप सभी को याद करेगा, तभी हमें इन चातुर्मासो की महान उपलब्धि प्राप्त होगी ।
सोचे - खूब सोचे
विचारे
जीवन सुन्दर बनाये
प्रवचनांश: शिविराचार्य पंडित रत्न पूज्य श्री विनयमुनिजी म.सा. "खींचन"
गणेशबाग, चातुर्मास सन् - २०१२