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75/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार 14. नमोसिद्धाणं
जो पूर्ण हो गये। सिद्ध हो गये। सब कर्म फल झड़ गये। निच्छिन्ना सव्वदुक्खा, जाइ-जरा-मरण बंधणविमुक्का अव्वाबाहँ सोक्ख, अणुहवंती सया कालं ।। (आव.नि. 982)
आठों कर्म मुक्त सदा सदा हो गये। अशरीरी जीव आत्मा स्वरूप में सिद्ध शिला पर आरोहित हो गया। सब दुख सर्व प्रकार के विलीन हो गये। अनन्त ज्ञान शक्ति प्रकटित हो गई। किसी प्रकार का बंधन न रहा। आकाश की तरह मुक्त, कोई आयु देह आदि का बंधन भी नहीं। इन गुणों की अटल अवगाहना, सिद्ध, बुद्ध, शुद्ध, ब्रह्म सदा अनुभव करते हैं। वे अतः निरंजन, निराकार, शिव, मुक्तात्त्मापरमात्मा, अजर अमर हैं। सिद्ध होने में किसी जाति, कुल, राष्ट्र, लिंग का बंधन नहीं। वे अलख, अनादि, समाधि, सुख में लीन, चिदविलास, निजज्ञान स्वरूप निखरते हैं। ___ नमुत्थुणं में सिद्ध प्रभु की शक्रेन्द्र ने स्तुति की है। आठ कर्म क्षय से आठ विलक्षण गुण प्रकट हुए। अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख, क्षायिक समकित, अटल अवगाहना, अमूर्तिक, अगुरु, अलघु अनन्त-वीर्य, केवलज्ञान, दर्शन हस्तकमलवंत तीनों काल की अवस्था ज्ञात हुई है। केवलीसिद्ध भगवान प्रत्यक्ष देख सकते हैं। वस्तु के गुणधर्मों के मूल उन्हे स्पष्ट हैं। केवलदर्शी हैं। विहंगम दृष्टि से नीचे का एक साथ दृश्य प्रकट होता है। उसी प्रकार समस्त वस्तुओं को साररूप में, सत्य रूप में, उन्हें दर्शन उपलब्ध हैं। सिद्धों की प्रमुख विशेषता है-सम्यक् दर्शन। जिन्होंने सब पदार्थों के गुणधर्मों को तत्व रूप में, बीज रूप मे पहिचान लिया हैं। वहाँ विस्तार समाप्त होकर साररूप बन गया। निश्चय नय अनुसार स्वयं मात्र आत्म स्वरूप, निजरूप में, अवस्थित हो गये। फिर भी शक्रेन्द्र ने नमुत्थुणं सूत्र में सिद्ध भगवान के अनेक गणों की स्तुति की है