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नवकार महामंत्र
नवकार महामंत्र बीजमंत्र है। अक्षर थोड़े हैं, लेकिन ब्रह्माण्ड इसका क्षेत्र है। इसे समस्त आगम एवं चौदह पूर्व के ज्ञान का सार कहा गया है।
जिनसासणसारो, चोदस पुव्वाण जो समुद्धारो। - जस्स मणे नमुक्कारों, संसारो तस्स किं कुणई।। 1. यह माहश्रुत स्कन्ध है। भगवती-सूत्र, प्रज्ञापना-सूत्र,
महानिषीथ- सूत्रादि (आगम) में यह उल्लेखित है। नवकार महामंत्र अहंकार एवं ममकार को मिटाने वाला रामबाण है। विनय एवं वीतराग के शुभभाव-अध्यावसायों से ओत-प्रोत है। गुणों की पावन पूजा है। इसमें व्यक्ति, वर्ग, लिंग, सम्प्रदाय, धर्म, जाति यहाँ तक कि राष्ट्र एवं काल की सीमाओं से भी परे केवल गुणानुराग है। संकीर्णता न होने से यह सर्वव्यापाक एवं सर्वग्राही है। यह चिरकालिक चिरंतन सत्य है, विश्ववंद्य है।
इसके पाँचों पदों में जहाँ पंच परमेष्ठि को नमस्कार किया गया है, वहाँ उनमें सम्यग-ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप, त्रिरत्न एवं सम्यग्-तप एवं वीर्याचार इन पाँचों आचार पालन का भी बोध होता है, अनुशीलन होता है। वैसे प्रत्येक पद में इन सबका समावेश होते हुए भी एक दृष्टि से प्रत्येक पद एक-एक उपरोक्त गुण का विशिष्ट द्योतक भी है। वैसे वे अत्यन्त गुणवान है।