SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना बहुत समय से एक ऐसे ग्रंथ की आवश्यकता थी जिसमें जैनों का संक्षिप्त इतिहास, उसका दर्शन, आचरण, और विज्ञान की नवीनतम् खोजों के अनुसार उसकी वैधता, सीमाएँ आदि हों। जिसके आधार पर यह साबित हो कि वह मानव धर्म बनने की योग्यता रखता है तथा विज्ञान एवं जैन दर्शन एक दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी हैं। इस हेतु कुल लगभग चार भागों में लेखों को विभक्त किया गया है। प्रथम भाग में जैनों के इतिहास की रूपरेखा, हिन्दी, अंग्रेजी दोनों में, दूसरे एवं अन्य लेख-पोरवाल, ओसवाल श्रीमाल एक हैं एवं एक लेख महावीर के जीवन के मार्मिक प्रसंगों पर है। इतिहास के इन चंद पन्नों से हमारे महान आचार्यों, उनकी रंचनाओं से हम परिचित होते हैं तथा महावीर के अनुयायी कहलाने के सार्थक भी हो सकते हैं। बाइबिल व जैन दर्शन में अहिंसा सम्बन्धी महात्मा ईसा मसीह की धारणाएँ अत्यन्त मार्मिक एवं महावीर की तरह प्रभावशाली हैं। जैन दर्शन पर भिन्न-भिन्न विषयों पर लगभग ग्यारह लेख प्रस्तुत किये हैं जो नवकार महामंत्र, तत्वार्थसूत्र का संदेश, प्रतिक्रमण के महत्वपूर्ण तीन सूत्र वंदित्तु, सकलाहर्त, अजित शान्ति एवं परम श्रद्धेय आचार्य राजेन्द्रसुरी जी की अंतिम-देशना के रूप में मय सरलार्थ एवं श्रद्धांजलि हैं। इसके साथ तत्वार्थ का मूल संदेश हिन्दी-अंग्रेजी में एवं कर्म-निवारण का संक्षिप्त छठा पाठ है मय कुछ अन्य दोहों के। इसके अलावा परमकृपालु देव श्रीमद्
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy