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जैन दर्शन एवं बाईबिल में महत्वपूर्ण समानता / 46
गाल भी सामने कर दो।" जब महावीर ध्यानावस्था में थे ग्वाले द्वारा इंगित किये बैल उसके लौटने पर नहीं मिले तो उन्हें चाबुक मारे, उन्हें कुएँ में लटकाया जाने लगा, तब इन्द्र ने चाहा कि वह प्रभु की रक्षा करें, लेकिन उसे अनुमति नहीं दी। इसी प्रकार साधना के अंतिम चरण में भी ग्वाले के बैल न मिलने पर असहय क्रोध से आग बबुला होकर ग्वाले ने प्रभु के कानों पर खीलें ठोंके । विश्व वंद्य चरम अहिसंक महावीर ने वैर की इस अंतहीन श्रृंखला का हृदय के भीतर निगुढ़ अंधकार की पर्तों के पीछे दर्शन किया कि वैर और प्रतिशोध की अटूट परम्परा जिससे संसार के प्राणी भव भव से ग्रस्त एवं त्रस्त हैं जैसा कि स्वयं महावीर के द्वारा अपने पूर्वभव त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में अत्यन्त क्रोध एवं अंह के वश यह ग्वाला जो तब शैयापाल था, उसके द्वारा मधुर संगीत में लयलीन होने से, उसे बंद न करने की अवज्ञा करने से, उसके कानों में गर्म-गर्म शीशा डलवाने का स्वयं को दोषी पाया एवं स्थापित किया की केवल क्षमा, अद्वितीय प्रेम ही इसका समाधान . है । पापों से प्रायश्चित एवं छुटकारों का एकमात्र उपाय है। उसे वरण किया। अपूर्व धैर्य पूर्वक ग्वाले द्वारा कानों में लकड़ी की कीलें ठोकने पर अपार वेदना को बिना प्रतिशोध सहन किया जिससे वैर बदले की अन्तहीन श्रृंखला समाप्त हो ।
ऐसा ही चरम उदाहरण विश्व इतिहास में प्रभु यीशु का है, जब शैतान यहूदा चाहता था कि यीशु को धोखे से पकड़ा दें यहुदा के साथ सैनिकों की टुकड़ी एवं पुलिस थी । यहुदा यीशु के पास आया, आगे बढ़ा और मित्र के समान उनका गाल चूमा। तब यीशु के साथी ने अपनी तलवार खींचकर मुख्य पुरोहित के नौकर का कान उड़ा दिया। यीशु ने उससे कहा " अपनी तलवार म्यान में रखो जो तलवार चलाते हैंवे तलवार से मारे जायेंगें ।" धर्म प्रचार तीर और तलवार से नहीं होते। धर्म की जीत दोनों की जीत है जिसमें किसी की हार नहीं होती।" यीशु के विरूद्ध झूठी गवाहियाँ दी गई और झूठे आरोप लगाये गये। मुख्य पुरोहित ने पूछा- बता