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________________ 279/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार सीमित करें एवं हमारी पृथ्वी, वायु, जल, इंधन एवं आकाश को बढ़ती क्षति से बचावें। कत्लखानों से बढ़ते उद्योगों से नदियों के पेयजल में मलबा, प्रदुषण प्रवाहित किया जाता है। सर्वत्र भारी मात्रा में विश्वभर में औद्योगिकरण के रूप में मुर्गीपालन, हजारों लाखों की संख्या में कृत्रिम संकुचित वातावरण में पालने से वायरस के रूप में समय-समय पर फ्लू, टाइफाइड, कोलेरा के बेक्टीरिया या प्रोटोजोआ के विषाणु, पड़े गंदे पानी में मलेरिया एवं डेंगू जैसी खतरनाक बीमारियाँ और नई नई बिमारियाँ फैलाते हैं। अतः इन एक कोशीय वायुकाय की जीव उत्पति को अच्छी तरह समझा जाये। वायुमण्डल को विषाक्त होने से रोकने पर कार्य किया जावे एवं उसमें मानव एवं संसार के अन्य जीवों को बचाने के उपाय किये जावें। केवल मुंह पर कपड़ा रखने या बाँधने से संतुष्ट होकर किसी पंथ के प्रतीक मात्र न बन जावें। धर्म जहाँ विज्ञान का गुरु है, उस धर्म को विज्ञान की प्रगति का तथा नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। विशनोई समाज ने जाम्बेजी महाराज के उपदेश पालते हुए एवं पेड़ पौधों एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिये साहसिक बलिदान द्वारा सराहनीय सेवा की है। प्रदूषण बढने से न केवल वायु एवं उनके सूक्ष्मजीव, वरन हमारी पृथ्वी, जल, ईंधन, अग्नि एवं सभी जीव राशि-त्रस, स्थावर, सबको जीवन बचाने का भारी खतरा है। आध्यात्म के आलोक से ही इस समस्या का समाधान हो सकेगा। अतः समस्या को ठीक समझना पहली जरूरत है।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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