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जैन दर्शन एवं आधुनिक विज्ञान
वर्तमान महान भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स ने अपनी पुस्तक “काल के संक्षिप्त इतिहास" के अध्याय, "ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं भविष्य" में लिखा है, "जब तक ब्रह्माण्ड प्रारम्भ हुआ हमारी कल्पना थी कि इसका कोई रचयिता या नियामक है, लेकिन यदि ब्रह्माण्ड स्वतः सम्पूर्ण है और इसकी कोई सीमा नहीं है तब तो यही स्पष्ट है कि इसका न कोई आदि है न कोई अंत है और इसमें रचयिता की क्या भूमिका या कार्य है?" महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने भी इसलिए कहा, "ईश्वर के पास कोई काम नहीं रहा क्योंकि प्रकृति स्वयं अपने ही नियमों से बंधी हुई है ।"
जैन दर्शन ने हजारों वर्ष पूर्व ही कह दिया था कि सृष्टि का कोई रचयिता नहीं है। प्रकृति स्वचालित और स्वायत्त व्यवस्था वाली है जो अपने ही नियमों और कायदों की पालना करती है । जैन- दर्शन ने यह भी प्रतिपादित किया कि ब्रह्माण्ड अनादि और अनंत है. जबकि दुनिया के अन्य धर्म जो जैन और बौद्ध के पश्चात् आए जैसे यहुदी, ईसाई, इस्लाम आदि मत, सृष्टि के रचयिता के रूप में ईश्वर को मानते हैं । सेन्ट ऑगस्टीन ने तो सृष्टि को, अपनी पुस्तक "जैनेसिस' में 7000 बी. सी. वर्ष पुराना ही माना जो कदाचित 12000 वर्ष पहले "हिमयुग" के अनुसार समझा होगा ।
आधुनिक विज्ञान का स्पष्ट कथन है कि किसी ईश्वर या खुदा द्वारा ऐसी सृष्टि की रचना नहीं की गई न कोई ब्राह्माण्ड