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________________ 213 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार एवं अनेकांत वादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीयता के लिए विशिष्ट योगदान वाले होने से 'परस्परोग्रहों जीवानाम सिद्धान्त' अनुसार अति उपयोगी है। भारत में भारतीय संस्कृति इन्हीं मूल आधारों पर प्रचुर समय तक पनपी है। वैदिक-काल, यहाँ तक कि पूर्व - वैदिक - काल, 'मोहनजोदड़ों एवं कालीबंगा की सभ्यता के समय से समन्वय होता रहा है। आर्यों के प्रकृति-पूजन, वैदिक सभ्यता, रामायण, महाभारत, उपनिषद, गीता, जैन-आगम, बौद्ध ग्रंथों - सबमें अध्यात्म के आदर्श - अहिंसा, संयम, तप एवं नैतिक मूल्य रहे हैं। इसमें वैष्णव, शैव, मातृशक्ति, देवासक, आदिवासी, जैन, बौद्ध, सिख सभी अपनी अपनी मान्यता रखते हुए भी शांति एवं सद्भाव से रहे हैं। इनमें धार्मिक कट्टरता एवं अनुदारता, घृणा, हिंसा, प्रतिशोध नहीं है। यूरोप की तरह यहाँ दीर्घकालीन धार्मिक युद्ध नहीं हुए । सम्प्रदाय मात्र पूजा एवं व्यक्तिगत रूप से श्रद्धा का विषय रहा । साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहा । भारतीय इतिहास के अंतराल में मध्ययुग में इस स्थिति को बड़ा झटका लगा। इस्लाम जो शांति एवं भाईचारे का धर्म था आततायियों, कट्टरवादि, लूटेरों एवं अधिनायकवादी शासकों के हाथों जैसे महमूद गजनवी, गौरी, तैमूर, औरंगजेब आदि द्वारा तेग, तलवार एवं ताकत के बल पर धर्मपरिवर्तन, राज्य विस्तार एवं धनोपार्जन का साधन बना । अंग्रेजों ने भी 'फूट डालो एवं राजकरों, की नीति के द्वारा साम्प्रदायिकता उकसाने का कार्य किया । पाकिस्तान बनाने के लिए जिन्ना द्वारा 'डाइरेक्ट एक्शन' बड़े पैमाने पर 16 अगस्त 1946 को साम्प्रदायिक दंगे, हिंसा के रूप में करवाये गये जिससे अकेले कलकत्ता में एक ही दंगे में छः हजार लोग मरे, अनेक घायल हुए। यह सिलसिला इस कदर बढा कि
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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