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________________ सुसंस्कार अनेकान्त दृष्टि से/210 हद तक साहसी बनना चाहता रहा हूँ। इसलिए गांधी, नेहरू विनोबा, विवेकानंद के जीवन का तथा गीता एवं जैन दर्शन का विद्यार्थी आजीवन बना रहा हूँ। इस प्रसंग में जब मैं आठवीं का कुशलाश्रम में विद्यार्थी बना तब कुलपति दिवंगत श्री देवीचन्द जी शाह ने एक बार जहां परीक्षा में कक्षा में प्रथम आने को सराहा, दैनिक जीवन व्यवहार पर भी टिप्पणी की कि 'बात-बात में बिगड़ना अच्छा नहीं', उनकी इस सीख को भी आजीवन ध्यान में रखा। एक बार हाल ही में शांति निकेतन बालोतरा में व्याख्यान देने पधारे श्री देवीचन्द जी ने, शाला निरीक्षण के समय अत्यन्त साफ सुथरी स्कूल के फर्श पर एक कागज का छोटा टुकड़ा पड़ा देख, उसे उठा लिया। जिसे देख हम विस्मित हुए तथा इसे अनुकरणीय माना। व्रत पालन, सत्य व्रत व अन्य उपरोक्त वर्णित व्रत एवं संस्कार निर्माण का सुफल मुझे भी मेरे जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। कॉलेज जीवन के प्रथम चारों सालों में आन्ध्रा, गुंटुर हिन्दू कॉलेज में, मुझे सुचरित्र,सुचाल-चलन एवं व्यवहार का श्रेष्ठ पुरूस्कार सतत् प्राप्त हुआ। मेरिट में विश्व विद्यालय में तीसरा स्थान मिला। प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के साथ सेवाकाल निष्कंटक बनना, अधिक उपयोगी रहा। इस बात का संतोष होने के साथ इसका विशेष कारण "सत्य", "मार्दव एवं आर्जव " भावना को देता हूँ। ___कोई भी सुंस्कार के लिए जैसे विद्यार्जन के लिए विनम्रता, गुरु के प्रति समर्पण भाव और स्वयं को सच्चा विनम्र विद्यार्थी मानना अनिवार्य समझता हूँ। साथ ही सतत् जागरूकता आवश्यक है। विनोबा भावे ने गीता प्रवचन में कहा है शिवजी पर गंगा की एक एक बूंद गिरती है उसका महत्व यह है कि सुंस्कार ही हमारे मन-मंदिर में जीवन में आवे। किन्हीं गलत मित्र, स्वजन से कोई बुराई, गाली, अविनय, बुरी आदत न आने पावे। नमनीयता यानी गुण ग्राहकता (Receptivity) के द्वारा ही सबसे एवं सर्वत्र सीखा जा सकता है। शेक्सपीयर के अनुसार, "Books
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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