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189/ जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
एक अमेरिकी विश्रुति दार्शनिक ने यहाँ तक कहा है, "विश्व शांति स्थापना के लिए जैनों की अहिंसा की अपेक्षा, स्याद्वाद का अत्यधिक प्रचार करना उचित है" ।
" वास्तव में स्याद्वाद में सत्य एवं अहिंसा दोनों ही शामिल हैं । तटस्थता पूर्वक पूर्वाग्रहों से रहित विनम्र दृष्टि का नाम स्यांद्वाद है। केवल उच्च कोटि के जैन साहित्य की सूची भी अपार है । स्याद्वाद शैली है, अनेकान्त धर्म है । विमलसूरी की रचना 'पऊम चरित्र - पद्मचरित्र जो श्री राम के चरित्र के बारे में है, उसके लिए महापंड़ित राहुल संकृत्यान ने कहा है- "वह रचना काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से तुलसीकृत रामायण से कहीं आगे है। कोमलता एवं मधुरता के आगे यह रचना अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं रखती।” यह वाल्मीकि रामायण के लगभग पुरानी है ।
‘षट्खण्डागम'; उन मुनि के शिष्यों द्वारा रचा गया, जिन मुनियों को पूर्वो का ज्ञान भी प्राप्त होना बताया गया है। जो दृष्टिवाद के साथ लुप्त होना, श्वेताम्बर मानते हैं । चामुण्डराय के गुरु श्री नेमीचन्द सूरी द्वारा कर्मवाद पर महान ग्रंथ गौम्मट सार लिखा गया । श्री हेमचन्द्राचार्य जो कालिकाल सर्वज्ञ माने जाते थे उनके द्वारा त्रिशष्ठीश्लाका पुरूष अन्य ग्रंथों के अलावा लिखा गया। वर्तमान युग में भी जयाचार्य द्वारा लाखों पदों की रचना की गई एवं चिन्मय चिराग श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी द्वारा सप्त खण्ड में दो लाख प्राकृत पद जो विविध ग्रंथों में थे उनसे अभिधानराजेन्द्र कोष की रचना की गयी । उक्त विश्व कोष जैन दर्शन का आज सभी पंथों के लिए एवं मनीषियों, विद्वजनों के लिए आधार एवं प्राथमिक ग्रंथ है ।
यह विडम्बना है कि जैन दर्शन साहित्य जो रत्न भण्डार हैं, वह तलघरों में, बन्द बस्तों में, शताब्दियों तक सीमित उपयोग, के साथ पड़ा रहा। पाश्चात्य विद्वानों, वैज्ञानिकों एंव पूर्वीय शोधकर्ताओं द्वारा भी इस पर अभी बहुत कुछ कार्य किया जाना बाकि है, अन्यथा विश्व की कई ज्वलन्त समस्याओं का निराकरण
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