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________________ जैन साहित्य का विश्व पर प्रभाव / 186 उनके उपांग मूल सूत्र, छेद, चूर्णिकाएं आदि मिलाकर कुल 46-47 आगम माने जाते हैं। मूल आदि आगम-ग्रंथ आचारंग है, जिसमें प्रभु की वाणी प्रचुर मात्रा में मूलतः उपलब्ध होना पाया जाता है । प्रारम्भ इस प्रकार है - (अनुवाद में ) "कइयों को विदित नहीं मैं कौन था? कहाँ से आया हूँ ?क्या मेरा पुनर्जन्म होगा...... ? जिन्हें यह ज्ञात है, वह परिज्ञात कर्त्ता मुनि कहलाते हैं ।" वर्तमान विश्वस्तर के वैज्ञानिक शुटिंगर ने भी कहा है कि आज का प्रश्न है, "मैं कौन हूँ" ? महावीर ने भी तत्समय यही प्रश्न किया एवं समाधान दिया जो विज्ञान के पास नहीं है । आचारंग के कुछ और उद्धरण देखें- "वनस्पति काय भी उत्पत्तिशील है । जैसे मनुष्य शरीर आहार करता है वैसे वनस्पति भी आहार करती है।" ( आज विज्ञान हमें बताता है कि पेड़ अपने पत्तों से आहार बनाते हैं उसका भोजन करते हैं।) "सत्यं परेण पर नत्थि अहिंसा परेणपरं । शस्त्र एक दूसरे से बढ़कर है लेकिन अहिंसा से बढ़कर कोई शस्त्र नहीं है ।" अन्य आगमों में प्रश्न व्याकरण एवं भगवती में अहिंसा का विशद वर्णन है । अहिंसा के उपकार के अनेक नाम हैं। भगवती अहिंसा में संयुक्त है—“क्षमता”, “समाधि”, “क्रांति”, “तृप्ति, “महति”, “धृति”, "ऋद्धि" आदि । भयभीत प्राणियों के लिए अहिंसा शरणाभूत है। नीड है। अहिंसा भूखों के लिए भोजन है । यह अहिंसा अवधि-ज्ञानियों, यहाँ तक कि केवल ज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है । चतुर्दश पूर्व श्रुतधारी मुनियों ने जिसका अध्ययन किया है। सभी लब्धि धारियों ने इसे प्रतिपादित किया है । जगत का त्राण है। भगवान प्राणी मात्र की करूणा से प्रेरित है। इसलिए धाति कर्म क्षय हो जाने के उपरान्त भी केवल ज्ञान के बाद भी लोकहित हेतु उपदेश देते हैं।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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