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कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/178
गोपन, निरभिमानता एवं नम्रता, इनका आस्रव उच्च गोत्र का हेतु
है।
tadviparyayo nicair vrtty anutsekau cottarasya
(6.25, Tattavarth Sutra) MEANING:- Contrary to the causes mentioned in earlier -aphorism, praise of others, self-criticism and introspection, hiding others shortcomings and ones own merits, behaving humbly i.e. shedding pride and behaving modestly, cause inflow of Karma binding high status
विघ्नकरणमन्तरायस्य
___(6.26, तत्वार्थ सूत्र) अर्थ:- किसी के दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य (उत्साह) में अन्तराय, यानी बाधा डालने से अर्थात् इन भावों के आस्रव से अन्तराय कर्म का बंध होता है। यानी उस जीव को भी अपने जीवन में ये ही बाधाएँ भोगनी होती हैं।
vgighnakarnam antarāysya
(6.26, Tattavarth Sutra) MEANING:- Impeding any one's potency for beneficience, gain, consumption, comforts and vigour, result in inflow of such obstructive Karmas in one's own life.