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कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में / 166
MEANING:- The long term bondage of Karma due to nonsentient things, include wrong actions by five types of bodies, gross, protein, conveyance, fiery and karmic or through material objects like weapons etc. used for them, such binding or resulting of Karma means 'Nirvartana' or discharging, excreta, effluents, urine, toxins, inadvertently i.e. inattentively or e.g. placing out of fear, or haste, without looking at the spot, or by mixing different foods, or making mind impure by evil thoughts or bursting out acrimonious words.
तत्प्रदोषनिह्मवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः
(6:11, तत्वार्थ सूत्र )..
अर्थः- ज्ञान और दर्शन के विषय में किये गये प्रदोष, निह्मव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादन् और उपघात ये ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्म के आस्रव हैं। ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कर्म बन्धन के छ: हेतु हैं, जो दोनों के लिए समान हैं। वे हैं (1) प्रदोष का अर्थ है द्वेष भाव, (2) निव का अर्थ है छुपाना, ( 3 ) मात्सर्य का अर्थ है ईर्ष्या, (4) अन्तराय का अर्थ है रूकावट, ज्ञानी, ज्ञान एवं ज्ञान के उपकरणों के प्रति ऐसे भाव एवं अविवेक, अपमान या तीव्र निंदा, (5) आसादन- गलत संकेत को सुनने वाला अयोग्यमंद बुद्धि है एवं ( 6 ) उपघात - जिनवाणी में झूठे दोष निकालना है। ये सभी ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय के आस्रव हैं। जब ये कारण देखने की क्रिया से सम्बन्धित होते हैं, ये दर्शनावरणीय के कारण बनते हैं। देखने के तुरन्त बाद तत्काल ज्ञान होता हैं अतः दोनो के कारण समान हैं ।