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________________ अनेकान्त एवं स्याद्वाद/118 लेकिन कहीं प्रजांतत्र के नाम पर एक पार्टी का ही शासन है। कहीं कई दल चुनाव में भाग लेते हैं। कहीं उनकी अर्थ नीति, पूंजीवादी है, कहीं समाजवादी, कहीं इनमें जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद है, कहीं पिछड़ी जातियों का सर्वोपरि हित होता है या कहीं आम आदमी की समग्र क्रांति की बात का कमोबेशी समन्व्य होता है। आश्चर्य है आजादी के 66 वर्षों बाद भी भारत के 30-35 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, सर्वहारा हैं। इन सबके उपरान्त भी कईयों का जन प्रतिनिधित्व करने का उद्देश्य केवल सत्ता हथियाना , भ्रष्टाचार करना, भाई भतीजावाद फैलाना, धर्म एवं सम्प्रदाय के नाम पर और विभाजन कराना, आंतक फैलाना, राज्य विस्तार करना, शस्त्रो अस्त्रों की होड बढाकर देशों को लड़वाना, धन कमाना आदि है। जिनसे सब देशों का अंततः नुकसान होता है। कोई कट्टरपंथी सत्ता मद में या अन्य कारणों से पागल व्यक्ति , इस परमाणु अस्त्रों के युग में समूची मानव जाति को प्रलय में धकेल सकता है। आज देशों के पास इतने विषैले अणु, जीवाणु रसायनिक हथियार हैं कि समस्त पृथ्वी को कई बार स्वाह किया जा सकता है। अमेरिका ने इराक पर हमला तेल के लालच में, विषैले , हथियार बनाने के आरोप लगा कर किया। अतः अहिंसा एवं सत्य पर अनेकान्त, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, स्याद्वाद अर्थात अहिंसा एवं सत्य इत्यादि कई दृष्टिकोणों से समग्र चिन्तन, समादर एवं विवेक से वैश्विक, देशीय, क्षेत्रीय समस्याओं का हल ढूढ़ने में ही मानवता का त्राण है। महावीर ने कहा है, "शस्त्र एक दूसरे से बढ़कर संहारक हैं। लेकिन अहिंसा सबसे बढ़कर अमोध शस्त्र है।" आज प्रलयंकारी शस्त्रों की होड़, उनका ऐकाधिकार रखने की प्रवृति तथा इससे धनोपार्जन की लालसा बढ़ी है। स्वार्थवश एकांगी दृष्टिकोण अपनाने से मिथ्यात्व, माया, छलकपट से राज्य विस्तार, अतुल धन सम्पति कमाने की नैतिकता रहित, निपट
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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