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109 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक के बीच घोर युद्ध हुआ जिसमें कई लाख लोगों का नरसंहार हुआ। हालांकि दोनों ही महावीर के अनुयायी एवं आपस में नाती थे । चेटक की पुत्री, कुणिक ( भगवती सूत्र शतक 7909) की माँ थी। इसी प्रकार कोशम्बी के राजा शतानीक ने चम्पा के राजा दधिवाहन पर विश्वासघात कर हमला किया, दोनों साडू थे। चेटक राजा की पुत्रियां मृगावती एवं धारणी क्रमशः से विवाहित थे लेकिन भयंकर राज्य लिप्सावश चम्पा को शतानीक की सेना नें न केवल जीता बल्कि निरपराध राणी धारणी, उसकी पुत्री राजकुमारी वसुमती एवं प्रजाजन का भी धन माल, युवतियाँ, सुन्दरियों को लूट कर दास दासी बनाया। बेवा रानी धारणी ने सतीत्व की रक्षा में प्राण दे दिये । वसुमति को जब वैश्या के यहाँ एक लाख स्वर्ण मुद्राओं में सरे बाजार बेचा जा रहा था तब निःसंतान धनावाह सेठ ने उसे उतनी मुद्रा में मोल लिया ।
वह अनुपम सौंदर्य एवं गुणों से सुवासित होने से चन्दनबाला कहलाई । मूला सेठानी की ईर्ष्यावश सेठ की अनुपस्थिति में जर्जर हाल, तीन दिन की भूखी प्यासी, बेडियों में जकड़ी, तलघर में पड़ी रही। श्रेष्ठी के आने पर और कुछ तब घर में खाना न होने पर सूप में बासी बाकुले उसे दिये। पांच माह पच्चीस दिन के उपवास करते हुए महावीर वहाँ पहुंचे। सारे अभिग्रह पूरे होने से भगवान ने उससे कुछ बाकुले लेकर पारणा किया। राजा शतानीक को तब रहस्य समझ में आया । चन्दनबाला साध्वी संघ की प्रमुखा बनी, अन्यों से पहले केवल्य प्राप्त किया । यह नारी उत्थान का श्रेयस्कर उदाहरण है।
शूद्रों के साथ दुराचार, अत्याचार होते थे। ऊंच नीच से जाति प्रथा, ग्रस्त थी । असंख्य पशुओं पर असीम अत्याचार, यज्ञादि, कर्म काण्ड के नाम पर होते थे । इन सब कुकृत्यों के पीछे वास्तविक सत्य, अहिंसा की भावना न होकर व्यस्त स्वार्थ, भौतिक लिप्सा, जिहा स्वाद, मद्य, मांसादि, माया, छल, कपट,