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________________ 107/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार इसी प्रकार सम्यग् दर्शन जिसका अन्य नाम सत्य दर्शन है और जो संकीर्ण न होकर अनेक धर्मी एवं विश्व व्यापक दृष्टिकोण वाला है, वही अनेकान्त है, जिसकी रोशनी में पाप, पुण्य, आस्रव, संवर, निर्जरा, मोक्ष, देह और आत्मा का भेद समझा जा सकता है, जहां आडम्बर, पाखण्ड, कपट, माया, फल की लालसा नहीं हो, ऐसा सत्य कथन अनेकान्त धर्म है। अतः हेमचन्द्राचार्य ने इसे अनेक धर्मात्मक सत् कहा है और इसके कथन की शैली को स्याद्वाद कहा है। लगभग 2600 वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने समस्त सृष्टि को जीव एवं अजीव (पुद्गल) दो श्रेणियों में विभक्त कर मूल 'षद्रव्य' का इन्हें अंग मानते हुए दोनों को अनंत धर्मी माना। जीव के गुणों का वर्णन आगे किया जायेगा। अभी कुछ पदार्थो के कुछ गुणों का उल्लेख किया जाता है। जैसे पानी अति सामान्य वस्तु है लेकिन इसके अनेक असाधारण गुण है। श्री सी.वी. रमन, नोबल पुरस्कार विजेता, जिन्होंने समुद्र के पानी पर "रमन प्रभाव" नाम से खोज की , उन्होंने कहा , “Water is elixir of life , the most common substance, with most uncommon properties", "पानी जीवन के लिए अमृत है, अति सामान्य पदार्थ होते हुए भी इसके कई असाधारण गुण है।" - इसी प्रकार शराब के लिए पूर्व न्यायाधीश (सर्वोच्च न्यायालय), श्री हिदायतुल्ला ने कहा है कि , “Alcohol kills the living and preserves the dead," शराब जीवन को नाश करती है लेकिन मृत जीव जैसे सर्प, आदि को दारू सहित शीशे में रखने से दीर्घ अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। चूना-मकान, कागज बनाने में, दवाईयों में..... इत्यादि कई कार्यों में प्रयुक्त होता है। एक रक्त की बूंद के विश्लेषण में 25 या अधिक प्रकार के गुणधर्म प्रकट होते हैं - जैसे शुगर, प्लाज्मा, प्लेटिनेट, ई.एस.आर, अल्बुमिन , आर.बी.सी, डब्ल्यू बी.सी , व बाइल, केटोन कई तरह के कोलेस्ट्रोल, बैक्टीरियां, युरिया,
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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