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________________ 93/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार - सम्यग्दर्शन के आधारभूत अंगों को समझ लेने के बाद, उसकी निष्पत्तियाँ यानी परिणामों को देखते हैं। पहला है-प्रशम भाव जिसका अर्थ कषायों का वेग कम होना-राग द्वेष का ज्वार मिटना। सम्यग्दर्शन होने पर दूसरा प्रभाव संवेग यानी संसार के मोह, माया, मद से मन का शनेःशनेः हटना अर्थात् भव-भ्रमण का वर्तुल कम होगा। जैसा तुलसीदास जी ने भगवान रामचन्द्र की आरती में कहा है- 'श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरत भवभय दारूणं।' चौरासी लाख योनियों के अंतहीन भटकाव, जन्म, जरा, मरण, व्याधि एवं नरक तिर्यंच गति का विशेष भय अनुभव होगा। अतः इनके निवारण का अचूक साधन सम्यक् दर्शन है, जिसके अगले पड़ाव व्रत, अप्रमाद, एवं कषाय विजय हैं, जिसके फल संयम एवं कर्म-निर्जरा हैं। यह मोक्ष मार्ग है। . इसी तरह अन्य फलित 'निर्वेद' हैं-सांसारिक बंधन की जड़ स्त्री-वेद, पुरुष-वेद, नपुंसक-वेद आदि हैं। भवोभव में विपरीत योनि का परस्पर आकर्षण एवं जन्म मरण की श्रृंखला अबाध चलती है। इनसे परे मुक्ति भावना है- संसार से नाता तोड़ने का भाव, आत्मा में परमानन्द का अनुभव । इसी प्रकार अन्य दो फलित 'अनुकम्पा' एवं 'आस्तिक्य' हैं। अनुकम्पा भाव के अर्थ हैं जगत को आत्मवत् मानने हेतु वात्सल्य, करूणा भाव 'सर्वे सुखीना भवन्तु। दूसरे के दुख में मन का द्रवित होना। 'जीयो और जीने दो' तथा 'परस्परोपग्रहो जीवानाम' (तत्वार्थ सूत्र) कि जीवों का परस्पर पर बड़ा उपकार है। अंतिम परिणति है 'आस्तिक्य'- ऐसी अटूट श्रद्धा का विकास कि जिन, वीतराग, केवली एवं सर्वज्ञ प्ररूपित आगम-वचन सत्य हैं तथा 'सत्यमेव जयते' है। __सम्यग-दर्शन सही दिशा बोध है। सत्य ज्ञान एवं सही आचरण स्वतः उसके अनुगामी है। इसकी प्राप्ति के उपाय एवं फलित, मानव जीवन-विज्ञान के आधार हैं, जो ऊपर दर्शाये गये हैं। आशा है प्रस्तुति को आप कई बार पढेंगे, समझेगें, यही इसकी उपलब्धि होगी।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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