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तरंगवती
. ७१ इस प्रकार अत्यंत विलाप करती और प्रियतम को संघर्ष में उतरने से रोकती मैं माथे पर हाथ जोडकर चोरों से कहने लगी, 'तुम्हारी इच्छानुसार मेरे शरीर पर से सभी मूल्यवान आभूषण ले लो परन्तु मेरी इतनी बिनती है कि इस निर्दोष की हत्या न करो। लुटेरों के बंदी बने
.. इतने में जैसे पंख काटकर जिनका आकाशगमन का अंत किया हो ऐसे पक्षियों के समान दुखियारे एवं भागने में अशक्त हमको चोरों ने पकड लिया ।
अन्य कुछ चोरों ने प्रथम नाव पर और उसमें रखे आभूषण के डिब्बे पर कब्जा किया और चिल्ला-चिल्लाकर रोती मुझे अन्य कुछ चोरों ने धक्का देकर पटक दिया ।
मेरी प्रार्थना के अनुसार सामना न करते मेरे प्रियतम को अन्य कुछ चारों ने ऐसे पकड लिया - मानो मंत्रबल का प्रितकार करने में अशक्त विषैला नाग को पकड़ा। . इस प्रकार, हे गृहस्वामिनी, हम दोनों को भागीरथी के पुलिन पर चोरों ने पकड़ा और रत्नों का डिब्बा भी ले लिया । हे गृहस्वामिनी, हाथ में कंकण के सिवा सभी मेरे गहने उन्होंने उतार लिये ।।
मेरा प्रियतम मुझे, फूल चुन ली गई लता जैसी शोभाहीन बनी देखकर, टपटप आँसू गिराता मूक रुदन करने लगा। लुट गये भंडार एवं कमलशून्य सरोवर समान श्रीहीन मेरे प्रियतम को देखकर मैं भी दुःखी होकर रो पड़ी ।
___ऊँची आवाज से चिल्ला-चिल्लाकर रोती मुझे देखकर निष्ठुर चोरों ने डाँटकर कहा, 'दासी, शोर-शराबा मत कर वरन् इस छोकरे को मार डालेंगे।'
यह सुनकर प्रियतम के प्राणों की रक्षा के लिए मैं उससे लिपट गई और हिचकियाँ ले लेकर काँपते हृदय मूक रुदन करने लगी ! आँसू के कारण मेरे
अधरोष्ठ चिकना हो गया। नयनरूप मेघों से मैं अपने पयोधररूप डुंगरों को नहलाती रही ।
हे गृहस्वामिनी, चोरटोली का सरदार, उसके सामने लाकर रखे आभरणडिब्बे, को देखकर खुश खुश हो गया और अपने सुभटों से कहने लगा, 'एक पूरा महल