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सीसं कहवि न फुट्ट जमस्स पालित्तं हरंतस्स । जस्स मुह-निज्झकराओ तरंगलोला नई बूढा ॥ चक्काय-जुथल-सुहाया, रम्मत्तण-राय-हंस-कय-हरिसा । जस्स कुल पव्वयस्स व, वियरइ गंगा तरंगवई ॥
उद्द्योतनसूरि . "जिसके मुखनिर्झर से 'तरंगलोला' नदी बही, उन पादलिप्त को उठा जानेवाले यमराज का मस्तिष्क फट क्यों न गया ?'
'चक्रवाक-युगल से शोभती, "राजहंसो"को प्रमुदित करती "तरंगवती", हिमालय से प्रवहमान गंगा समान पादलिप्त के मुख से बही ।'