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तरंगवती जानती हो। इसलिए ही मैं तुम्हें यह बात कहती हूँ । हे प्रिय सखी, तुम तो इसका खूब ध्यान रखती हो कि जो तुम्हारे कर्णद्वार में प्रविष्ट होता है, वह मुख से बाहर न निकल पाये । इसीलिए तो मैं तुम्हें यह बात बताती हूँ। मैं तुम्हें मेरे प्राणों की सौगंध देती हूं कि तुम मेरा यह रहस्य किसी से न कहना।'
इस प्रकार सारसिका को जब मैंने शपथ से बाँध ली तब वह मेरे पाँवों में गिरकर कहने लगी, 'तुम कहती हो वैसा ही करूँगी । मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी यह बात मुझे कहो । हे विशालाक्षि, मैं तुम्हारे चरणों और मेरे प्राणों के शपथ खाती हूँ कि तुम जो कहोगी वह मैं प्रगट करूँगी ही नहीं।
- मैंने कहा, 'हे सारसिका, तुम मेरे प्रति अनुरागवाली हो इसलिए तुम्हें बात कहती हूँ। मेरा कोई भी ऐसा रहस्य नहीं जो मैंने तुमको न कहा हो । पूर्वभव में मैंने जो दुःख सहा है इसके कारण मेरी आँखों से आँसू बरस रहे हैं । तीव्र वेदना फिर से सहने की स्थिति पैदा होने के भय से मैं यह कहते हिचकिचाती हूँ। परन्तु तुम सुनो, सुनते समय खिन्न या विह्वल मत होना - प्रियविरह के कारुण्यसभर सारे सुखदुःख का सिलसिला मैं बयान करती हूँ। तुम्हें सुनने का भी कौतूहल है, तो मैं यहाँ शान्ति से बैठकर शोक से खिन्न और अश्रुपुरित नेत्रों से अपनी व्यथा-कथा कहती हूँ।