SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षेत्र के सम्बन्ध में विचार करें तो ज्ञात होगा कि श्रीशत्रुजयादि पवित्र तीर्थभूमियों तथा अन्य धर्म-स्थानों में प्रात्मा को आत्मिक विकास में सद्विचारणा स्फुरती है, जबकि कुरुक्षेत्र, दण्डकारण्य और पानीपत जैसे क्षेत्रों में प्रात्मा को कर्मबन्धन के दुष्ट विचारों की जागृति होती है। इस सम्बन्ध में मातापिता के पूर्ण भक्त श्रवणकुमार की कथा दण्डकारण्यक्षेत्र के प्रभाव को व्यक्त करती है। ऐसी स्थितियों में परिणमन का मुख्य कारण क्षेत्र ही है। उत्सर्पिणी काल में दिन प्रतिदिन सब प्रकार से अभिवृद्धि होती है और अवसर्पिणीकाल में दिन प्रतिदिन सब प्रकार से हीनता आ जाती है। शरद्, बसन्त और वर्षा इन तीन ऋतुओं में पञ्चेन्द्रियों के विषयों का विशेष बल रहता है। प्रशान्त वातावरण विशेषरूप में बसन्त, शिशिर और ग्रीष्म ऋतु में देखने में आता है। शुभ कार्य करने के लिये शुभ मुहूर्त, शुभ घड़ी, शुभ पल और शुभ समय लिया जाता है एवं अशुभ को टालना पड़ता है । इन सब स्थितियों में काल की प्रबलता निमित्तभूत है । शुभ भाव में प्रात्मा सुखी होती है और अन्त में शुद्ध भाव में कर्मपंजर से मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त करती है । इसीलिये कहते हैं कि भावना भवनाशिनी। अशुभ भाव श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy