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(११) महा सुद ४ सोमवार दिनांक ६-२-८४ को लग्नोत्सव, राज्याभिषेक तथा नव लोकान्तिक देवों की विज्ञप्ति का कार्यक्रम रहा। दीक्षा-कल्याणक का भव्य वरघोड़ा निकला तथा दीक्षा कल्याणक का विधान हुआ। शा० जवानमलजी सूजाजी की ओर से प्रभावनना युक्त पूजा पढ़ाई गई तथा शा० देवीचन्द श्रीचन्दजी की तरफ से नोकारसी हुई।
(१२) महा सुद ५ (वसंतपंचमी) मंगलवार दिनांक ७-२-८४ को १८ अभिोक, चैत्याभिषेक, दण्ड-कलशाभिषेक तथा २५ कुसुमांजलि आदि की विधि हुई। केवलज्ञान कल्याणक तथा निर्वाण कल्याणक का विधान हा। भव्य वरघोड़ा निकला। शक्रेन्द्र महाराजा का आदेश लेने वाले संघवी चुनीलाल वीसाजी के सुपुत्र सोहनराजजी के घर पर चतुर्विध संघ सहित गाजे-बाजे के साथ परमपूज्य आचार्य म० सा० पधारे। वहाँ ज्ञानपूजन तथा मंगल प्रवचन होने के बाद प्रभावना हुई । शा० भबूतमल सरदारमल जेठाजी की तरफ से प्रभावना युक्त पूजा पढ़ाई गई। नोकारसी शा० चुनीलाल वीसाजी की ओर से हुई।
(१३) महा सुद ६ बुधवार दिनांक ८-२-८४ को प्रातः शुभ लग्न मुहूर्ते श्रीसंघ के अनन्य उत्साहपूर्वक श्रीसीमन्धरस्वामी आदि जिन बिम्बों की परमशासन प्रभावनापूर्वक प्रतिष्ठा हुई। उसमें
(१) श्रीसीमंधरस्वामा की मूत्ति मूलनायक तरीके संघवी श्रीदेवीचन्दजी श्रीचन्दजी ने विराजमान की।
(२) श्रीपुंडरीकस्वामी गणधर भगवान की मूत्ति शा० वनेचन्दजी फौजमलजी के परिवार की ओर से बिराजमान की गई।
(३) श्रीगौतमस्वामी गणघर भगवान की मूत्ति शा० गुलाबचन्द फूलचन्द रुघनाथजी ने विराजमान की।
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