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________________ 'श्री आदिनाथ जैन आराधना भवन' में प्रथम चातुर्मासार्थे मंगलप्रवेश किया। व्याख्यान के पाट पर पूज्यपाद आचार्य म० सा० आदि बिराजमान हुए। ___ श्री जैन धार्मिक पाठशाला की बालिकाओं का स्वागत-गीत होने के पश्चात् पूज्यपाद आचार्य म० सा० का मंगलप्रवचन तथा 'चातुर्मास की विशिष्टता' पर व्याख्यान होने के बाद विद्वान् प्रवक्ता पूज्य मुनिराज श्री जिनोत्तमविजयजी म० श्री का भी प्रवचन हुआ। अन्त में सर्वमंगल के बाद प्रभावना हुई। संघ में से १०८ आयंबिल हुए। दोपहर में पंचकल्याणक की पूजा (प्रभावना युक्त) जिनमन्दिर में पढ़ाई गई। प्रतिदिन परमपूज्य आचार्य म० श्री के प्रवचन का लाभ श्रीसंघ को बराबर मिलता रहा। (२) आषाढ़ शुक्ला १३ शुक्रवार दिनांक २२-७-८३ से संघ में चातुर्मास पूर्णाहुति कार्तिक शुक्ला १५ रविवार दिनांक २०-११-८३ तक क्रमशः अखण्ड एकेक अट्ठम तप करने का प्रारम्भ हुआ । अट्ठम करने वाले तपस्वी महानुभाव को बहुमान तरीके तिलक कर ५१ रुपयों की प्रभावना श्रीसंघ की ओर से व्याख्यान में देने का भी कार्यक्रम चालू रहा। (३) श्रावण (आषाढ़) वद ४ शुक्रवार दिनांक २६-७-८३ को आदेश लेने वाले शा० भूरमल धनाजी पू. श्रीभगवतीसूत्र को रथ में पधराकर पूज्यपाद प्राचार्य म० सा० आदि चतुर्विध संघ सहित वाजते-गाजते अपने घर पर ले गये। ज्ञानपूजन-मंगल प्रवचन के पश्चात् प० पू० प्रा० म० सा० की प्रेरणा से शा० भूरमलजी ने उद्यापनमहोत्सव कराने की प्रतिज्ञा ली। प्रभावना की। रात्रिजागरण में भी प्रभावना की। ( 90 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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