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________________ ।। ढाल कड़खा की तर्ज ॥ सांभलो कलश जिन महोत्सवनो इहां । छप्पन कुमरी दिशि विदिशि आवे तिहां ।। माय सुत नमिय, पाणंद अधिको धरे । ___ अष्ट संवर्त वायु थी कचरो हरे ।। १ ।। वृष्टि गंधोदके, अष्ट कुमरी करे। अष्ट कलशा भरी, अष्ट दर्पण धरे ।। अष्ट चामर धरे, अष्ट पंखा लही। चार रक्षा करी, चार दीपक ग्रही ।। २ ।। घर करी केलना, माय सुत लावती। करण शुचि कर्म जल, कलशे न्हवरावती ।। कुसुम पूजी अलंकार पहेरावती । राखड़ी बांधी जई, शयन पधरावती ।। ३ ।। नमिय कहे माय तुज बाल लीलावती । - मेरु रवि चन्द्र लगे, जीवजो जगपति ।। स्वामि गुण गावती, निज घरे जावती । - तिण समे इन्द्र सिंहासन कंपती ।। ४ ।। ॥ ढाल-एकवीशा की तर्ज ।। जिन जनम्याजी, जिण वेला जननी घरे । तिण वेलाजी, इन्द्र सिंहासन थरहरे ।। दाहिणोत्तरजी, जेता जिन जनमे यदा । दिशि नायकजी, सोहम ईशान बिहुं तदा ॥ १ ॥ ॥त्रोटक छंद ।। तदा चिते इन्द्र मनमां, कोण अवसर ए बन्यो। जिन जन्म अवधिनाणे जारणी, हर्ष प्रानन्द ऊपन्यो ।। ( 67 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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