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________________ 'उदयरतन' कहे आलस टाली, जे जिन नाम जपे जपमाली, ते घर नित्य दीवाली ।। ४ ।। देववंदन विधि पहले खमासमण देकर इरिया० तस्स० अन्नत्थ, कहकर एक लोगस्स या चार नवकार का काउसग्ग करना बाद लोगस्स कहना फिर उत्तरासन करके खमासमण देकर इच्छा० चैत्यवंदन करू इच्छं कहकर चैत्यवंदन करना। बाद जंकिंचि०, नमुत्थु०, जयवि० प्राभवमखंडा तक कहने के बाद फिर खमासमण देकर इच्छा० चैत्यवंदन करू, इच्छं, कहकर चैत्यवंदन कहना बाद जंकिंचि० नमुत्थु०, अरिहंत चेई०, अन्नत्थ० कहकर एक नवकार का काउसग्ग करके नमोर्हत्० कहकर स्तुति पहली कहना, बाद लोगस्स० सव्वलोए अरिहंत चेई० अन्नत्थ कह एक नवकार का काउसग्ग करके नमो अरिहंताणं कह दूसरी स्तुति कहना बाद पुक्खरवरदी० वंदरण वत्ति० अन्नत्थ कह एक नवकार का काउसग्ग कर नमो अरिहंतारणं कह तीसरी स्तुति कहना फिर सिद्धाणं० वैयावच्च अन्नत्थ० कह एक नवकार का काउसग्ग कर नमो अरिहंतारणं नमोऽर्हत्० कह चतुर्थ स्तुति कहना। फिर नमुत्थुरणं, अरिहंत चेइ० अन्नत्थ कह एक नवकार का काउसग्ग करके नमो अरिहंतारणं नमोहत्. कह पहली स्तुति कहना। फिर लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत चेई., अन्नत्थ कह एक नवकार का काउसग्ग करके नमो अरिहंताणं कह दूसरी स्तुति कहना बाद पुक्खरवरदी० वंदण० अन्नत्थ० कह एक नवकार का काउसग्ग कर नमो अरिहंताणं कहकर तीसरी स्तुति कहना बाद में सिद्धा० वैयावच्च. अन्नत्थ कह एक नवकार का काउसग्ग करके नमो अरिहंताणं नमोर्हत् कह चतुर्थ स्तुति कहना. (फिर) ( 53 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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