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________________ अमराचल पद संपजे, पूरे मनना कोड । मोहन कहे विधि युत करो, जिम होवे भवनो छोड ।। ३ ।। चैत्यवंदन ४ सुललित नवपद ध्यान थी, परमानंद लहिये । ध्यान अग्नि थी कर्मना, ईंधन पुण दहिये ।। १ ॥ ईति भीति ने रोग शोक, सवि दूर पणासे । भोग संजोग सुबुद्धिता, प्राप्त सुविलासे ॥ २ ॥ सिद्धचक्र तप कीजताए, उत्तम प्रभुता संग। मोहन नारण प्रसिद्धता, गंगा रंग तरंग ।। ३ ॥ चैत्यवंदन ५ सकल मंगल परम कमला, केलि मंजुल मंदिरं । भवकोटि संचित पापनाशन, नमो नवपद जयकरं ॥१॥ अरिहंत सिद्ध सूरीश वाचक, साधु दर्शन सुखकरं । वर ज्ञान पद चारित्र तप ए, नमो नवपद जयकरं ।। २ ।। श्रीपाल राजा शरीर साजा, सेवता नवपद वरं। जगमांहि गाजा कीर्ति भाजा, नमो नवपद जयकरं ।। ३ ।। श्री सिद्धचक्र पसाय संकट, आपदा नासे सवे । वली विस्तरे सुख मनोवांछित, नमो नवपद जयकरं ।। ४ ।। प्रांबिल नवदिन देववंदन, त्रण टंक निरंतरं । बे बार पडिकमणां पलेवरण, नमो नवपद जयकरं ।। ५ ।। ( 42 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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