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________________ पांत्रीस गुण युक्त वाणी । जे प्रतिबोध करे जग जनने, ते जिन नमिये प्राणोरे ॥ भविका ।। सिद्ध चक्र० ।। ५ ।। __इसके बाद जयवीयराय० अरिहंत चेईआणं० अन्नत्थ कहकर एक नवकार का काउसग्ग करके नमोर्हत् कह स्तुति कहना । स्तुति सकल द्रव्य पर्याय प्ररूपक, लोकालोक सरूपोजी। केवलज्ञान की ज्योति प्रकाशक, अनंत गुणे करी पूरोजी॥ तीजे भव थानक अाराधी, गोत्र तीर्थकर नूरोजी । बार गुणाकर एहवा अरिहंत, आराधो गुरण भूरोजी ॥१॥ श्री सिद्ध पद चैत्यवंदन सिद्धाणमाणंद रमालयाणं, नमो नमोऽयंत चउक्कयाणं । करी आठ कर्म क्षये पार पाम्या, जरा जन्म मरणादि भय जेगे वाम्या । निरावरण जे आत्म रूपे प्रसिद्धा, थया पार पामी सदा सिद्ध बुद्धा ।। २ ।। त्रिभागोन देहावगाहात्म देशा, रह्या ज्ञान मय जातवर्णादि लेशा । सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्भवादि स्वरूपा ।। ३ ।। स्तवन समय पए संतर अण फरसी, चरम तिभाग विशेष । अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते अशेष रे ।। भविका ।। सिद्ध ।। ।। १ ।। पूर्व प्रयोग ने गति परिणामे, बंधन छेद असंग । समय एक ऊर्ध्वगति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो रंग रे ।। भविका । सिद्ध ॥२॥ निर्मल सिद्ध शिलानी ऊपरे, जोयण एक लोगंत । सादि अनंत तिहां स्थिति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो संतरे ।। भाविका ।। सिद्ध ॥ ३ ॥ ( 32 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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