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अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म, उत्कृष्ट मगल है । कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरि महाराजा ने भी मनुष्य जीवन के महाफलरूप में तप का ही वर्णन किया है। देखिये--
अद्यश्वीनविनाशस्य, शरीरस्य शरीरिणाम् । सकामनिर्जरासारं, तप एव महत् फलम् ॥ २ ॥
जीवों का शरीर जो आज या कल विनष्ट होने वाला है, उसका महान् फल तो यही है कि सकाम निर्जरा से प्रधान ऐसा तप अर्थात् सकाम निर्जरा करने वाला तप करना । (२)
* क्षमा आदि दश प्रकार के यतिधम में भी तप का स्थान है।
* दान आदि चार प्रकार के धर्म में भी तप का स्थान है
* दर्शनाचार आदि पंचाचार में भी चतुर्थाचार तरीके तप का स्थान है।
* मनुष्य जन्म के पूज्यपूजा आदि आठ पदार्थों में भी तप का स्थान है।
* गृहस्थ के छह प्रकार के नित्यकर्मों में भी तप का स्थान है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२५८