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________________ का स्थान पाँचवाँ है। पंचपरमेष्ठियों में जैसे मार्गदर्शक गुण के योग से श्री अरिहन्तदेवों को, अविनाशी गुण के योग से श्री सिद्ध भगवन्तों को, आचार के योग से श्री प्राचार्य महाराजाओं को तथा विनयगुण के योग से श्री उपाध्याय महाराजाओं को पूज्य माना है, वैसे ही संयम की साधना में सहायक बनने के योग से श्री साधु महाराजाओं को भी पूज्य माना है। श्रीवीतरागदेव के जैनशासन में पंचम पदे साधुपद को भी पूज्य गिनते हैं । इसलिये श्रीवीतरागदेव के शासन को प्राप्त किये हुए आत्माओं को साधु परमेष्ठी भी सदा सेव्य ही लगते हैं। श्रीसिद्धचक्र के नौ पदों में भी साधुपद का स्थान पंचम ही है। साधुपद की आराधना श्यामवर्ग से क्यों ? जैसे श्री अरिहन्त पद की आराधना श्वेतवर्ण से, श्री सिद्धपद की आराधना लालवर्ण से, श्री प्राचार्य पद की आराधना पीतवर्ण से तथा श्री उपाध्याय पद की आराधना नीलवर्ण से होती है, वैसे ही श्री साधु पद की आराधना श्यामवर्ण से होती है। श्यामवर्ण से पाराधना होने का कारण यह है कि (१) पच परमेष्ठी पैकी तृतीय आचार्यपद रूप सुवर्णसोना की परीक्षा पचम साधुधर्म रूप कसौटी से होती है । कसौटी का पाषाण श्यामवर्ण का होता है, अतः साधुपद श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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