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________________ (२७) इयमत्र भावना - स सर्षपाणां निकरः कल्प्यते चेदृशात्मकः । प्राग्वदभ्यास गुणितः सहस्त्र कोटिको भवेत् ॥१७१॥ यहां इसका यह भावार्थ है कि- जैसे कि किसी ढेर में दस दाने हैं तो पूर्व कहे अनुसार 'अभ्यास गुणाकार' करने से उस ढेर की संख्या एक हजार करोड़ होती है । (१७१) गरिष्टयुक्ता संख्यातादर्वाग् जघन्यतः परम् । मध्यमं जायते युक्ता संख्यातमिति तद्विदः ॥१७२॥ जघन्ययुक्ता संख्यातं प्राग्वदभ्यासताडितम् । हीनमेकेन रूपेण युक्ता संख्यातकं गुरु ॥१७३।। एतदेव रूप युक्तम् संख्यासंख्यकं लघु । मध्यासंख्याता संख्यातमस्मादुत्कृष्टतावधि ॥१७४॥ जघन्या संख्यातं भवेदभ्यासताडितम् । एक रूपोनितं ज्येष्टा संख्या संख्यातकं स्फुटम् ॥१७॥ अत्रैक रूपक्षेपे च . परीत्तानन्तकं लघु । मध्यं चास्मात्समुत्कृष्ट परीत्तानन्तकावधि ॥१७६। ह्रस्वं परीत्तानन्तं च प्राग्वदभ्यास संगुणम् । परीत्तानन्तकं ज्येष्ठ मेक रूपोनितं भवेत् ॥१७७॥ सैकरूपं तज्जघन्य युक्तानन्तकमीरितम् । परमस्मात्पंराच्चार्वाग् युक्तानन्तं हि मध्यमम् ॥१७८॥ युक्तानन्तं. तजघन्यमभ्यास परिताडितम् । । निरेक रूपमुत्कृष्ट युक्तानन्तकमाहितम् ॥१७६।। अत्रैक रूप क्षेपे स्यादनन्तानन्तकं लघु । अस्माघदधिकं मध्यानन्तानन्तं च तत्समम् ॥१८०॥ उत्कृष्टानन्तानन्तं तु नास्ति सिद्धान्ति नां मते । अनुयोगद्वार सूत्रे यदुक्तं गणधारिभिः ॥१८१॥ अब उत्कृष्टयुक्त असंख्यात से पहले का और जघन्ययुक्त असंख्यात से आगे का है वह मध्यम युक्त असंख्यात कहलाता है और अभ्यास गुणित तथा एक रूप हीन जघन्ययुक्त असंख्यात उत्कृष्ट युक्त असंख्यात कहलाता है और वह एक रूप युक्त हो तो वह जघन्य असंख्य असंख्य असंख्यात कहलाता है और इससे वह
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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