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________________ (५६१) वह इस तरह-एक उज्ज्व ल वर्ण के पुदगल के गंध को लेकर दो भेद होते हैं । संस्थान तथा रस को लेकर पांच-पांच भेद होते हैं तथा स्पर्श को लेकर आठ भेद होते हैं अर्थात् कुल बीस भेद होते हैं । अतः पांच वर्ण को लेकर २०४५=१०० सौ भेद होते हैं । इसी ही तरह संस्थान के और सर्व रसों की प्रधानता को लेकर भी सौ-सौ भेद होते हैं अर्थात् सब मिलाकर तीन सौ भेद होते हैं । (१३० से १३२) सुगन्धीनां पंच पंच भेदा वर्णं रसैस्तथा । संस्थानैश्चाष्ट नु स्पर्शः स्यु स्त्रयोविंशतिस्ततः ॥१३३॥ दुर्गन्थानामपीत्थं स्युस्त्रयो विंशतिरेव हि । षट् चत्वारिंशदुभय योगे स्युर्गंधजा इति ॥१३४॥ तथा सुगन्ध पुद्गल के वर्ण, रस और संस्थान को लेकर पांच पांच भेद होते है और स्पर्श लेकर आठभेद होते हैं ये तेईस भेद होते हैं इसी तरह ही दुर्गन्ध के भी तेइस भेद होते हैं । अतः दोनों प्रकार के भेदों का कुल मिलाकर २३+२३=४६ छियालीस भेद होते हैं । (१३३-१३४) शीतस्पर्शस्यापि भेदौ द्वौ मतो गन्ध भेदतः । संस्थान रस वर्णैश्च पंच पंच भिदस्तथा ॥१३५॥ • शीतस्याधिकृतत्वेन तत्रोष्णस्य त्वसंभवात् । भिदोऽस्य शेषैः स्पर्शः षट्स्युस्त्रयो विंशतिस्ततः ॥१३६॥ - स्पर्शानांमेवमष्टानां प्रत्येकं गन्धयोरपि । 'त्रयोविंशति भेदत्वात् द्विशती त्रिशदुत्तरा ॥१३७॥ तथा शीत स्पर्श वाले को गन्ध के अनुसार दो भेद हैं तथा संस्थान, रस और वर्ण के अनुसार पांच-पांच भेद होते हैं । यहां शीत स्पर्श की बात की है । इसमें उष्णता असंभव होने से शेष छः स्पर्श रहते हैं। इसके छः भेद होते हैं । अतः कुल भेद २+५+५+५+६=२३ तेईस भेद शीत स्पर्श वाले के होते हैं और आठ स्पर्श गिनते २३४८-१८४ भेद होते हैं । इसमें दो प्रकार की गंध वाले के छियालीस मिलाने से कुल २३० होते हैं । (१३५ से १३७) • एवमेते पुदगलानां भेदाः सर्वे प्रकीर्तिताः । शतानि पंच सत्रिंशान्येवम जीव रूपिणाम् ॥१३८॥ इस प्रकार पूर्व में तीन सौ भेद और गिने हैं। इस तरह उन्हें मिलाने से कुल ५३० भेद अजीव रूपी पुद्गल के होते है । (१३८)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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