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________________ (५८६) (आ) त्रिकोन संस्थान के भी चार भेद होते हैं। वह इस प्रकार हैं - १. तीन प्रदेशी, २. छ: प्रदेशी, ३. पैंतीस प्रदेशी और ४. चार प्रदेशी । (इ) चतुष्कोण के भी चार भेद हैं । १. नौ प्रदेशी, २. चार प्रदेशी, ३. सत्ताईस प्रदेशी और ४. आठ प्रदेशी । (ई) 'आयत' संस्थान के छः भेद होते हैं। वह इस प्रकार हैं - १. तीन प्रदेशी, २. दो प्रदेशी, ३. पंद्रह प्रदेशी, ४. छः प्रदेशी, ५ पैंतालीस प्रदेशी और ६. बारह प्रदेशी । (ए) परिमंडल संस्थान के दो भेद होते हैं और उसमें एक में बीस और दूसरे में चालीस प्रदेश होते हैं । (६६ से १०२) पंचमांगे त्वनित्थंस्थं षष्ठं संस्थानमीरितम् । पंचभ्योऽपि व्यतिरिक्तं द्वयादि संयोगसंभवम् ॥१०३॥ पांचवें अंग श्री भगवती सूत्र में तो इस तरह कहा है कि पांच से अतिरिक्त एक छठा सिद्धों का संस्थान है और वह दो अथवा विशेष संस्थानों के संयोग से हुआ है । (१०३) संस्थानयोर्द्वयोर्य धप्येक द्रव्ये न संभवः 1 तथापि भिन्नभिन्नांशे ते स्यातां दर्विकादि वत् ॥१०४॥ यद्यपि एक द्रव्य के अन्दर दो संस्थान संभव नहीं हैं फिर भी कड़वी आदि के समान दो भिन्न भिन्न अंशों को लेकर यह होता है । ( १०४ ) एषु चाल्पाल्प प्रदेशावगाहीनि स्वभावतः । भूयस्थल्पानि भूयिष्टखांश स्थायीनि तानि च ॥ १०५ ॥ इसमें अल्पाल्प आकाश प्रदेशों के अवगाही में रहने वालों की संख्या बहुत है और बहुत आकाश प्रदेशों के अवगाही के रहने वालों की संख्या थोड़ी है। (१०५) संस्थानामायतं षोढा द्विविधं परिमंडलम् । चतुर्विधानि शेषाणि संस्थानानीति विंशतिः ॥१०६॥ इति संस्थान परीणामः ॥३॥ इस प्रकार आयात संस्थान छः प्रकार के हैं, परिमंडल संस्थान दो प्रकार के हैं और शेष तीन संस्थान चार-चार प्रकार के हैं अर्थात् सब मिलाकर गिनने से बीस प्रकार के संस्थान होते हैं । (१०६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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