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________________ (५८३) और चार कोनों में एक-एक परमाणु का स्थापन करने से होता है । (६१-६२) अणूनां विंशतेरेषामुपर्यणुषु विंशतौ । स्थापितेषु युग्म जातं स्यात् घनं परिमण्डलम् ॥६३॥ एतच्चत्वारिंशदंशं तावत्खांश प्रतिष्ठितम् । ' ओज प्रदेश जनितौ त्वत्र भेदौ न संमतौ ॥१५॥ पूर्व कहे अनुसार बीस परमाणु की स्थापना करके, इन बीस के ऊपर दूसरे बीस परमाणुओं की स्थापना करने से 'युग्म प्रदेशी घन परिमंडल' होता है । इसके चालीस प्रदेश होते हैं और चालीस आकाश प्रदेश का अवगाह होता है। प्रतर परिमंडल और घन परिमंडल ओज प्रदेशी नहीं होते । (६३-६४) उक्त प्रदेश न्यूनत्वे सम्भवन्ति न निश्चितम् । संस्थानानि यथोक्तानि तत इत्थं प्ररूपणा ॥६५॥ यथा पूर्वोक्ततः पंचाणुक प्रतर वृत्ततः । एकत्रांशे कर्षिते स्यात् समांशं चतुरस्रकम् ॥६६॥ - जैसा पूर्व कहा है इससे कम प्रदेश होते हैं तो इस कहे अनुसार संस्थान सर्वथा संभव ही नहीं होता, इसलिए यह कथन कहा है । क्योंकि पूर्वोक्त पांच • अणु वाले प्रतर वृत्त में से एक अंश कम करते हैं तो सम अंश वाला चौरस होता है । (६५-६६) . एतान्यतीन्द्रियत्वेन नैवातिशय वर्जितैः ।। झेंयान्यतः स्थापनाभिः प्रदर्श्यन्ते इमास्तु ता ॥६७॥ पूर्वोक्त संस्थान अतीन्द्रिय है । इसलिए जिसमें अतिशय अर्थात् अमुक असाधारण विशिष्टतायें न हों, वह यह नहीं जान सकते हैं। इस कारण से इसे . स्थापन पूर्वक समझाने में आता है । (६७) ओज प्रदेशी प्रतर वृत्त पांच परमाणु का इस तरह होता है-. . . . - युग्म प्रदेशी प्रतर वृत्त बारह परमाणु का इस प्रकार होता है-- .. .
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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