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________________ (५७७) यह गति परिणाम का स्वरूप है । (२) परिमंडलं च वृत्तंत्र्यस्त्रं च चतुरस्रकम् । आयतं च रूप्य जीव संस्थानं पंचधा मतम् ॥४८॥ अब संस्थान परिणाम श्लोक ४८ से १०६ तक में कहते हैं । रूपी जीव का पांच प्रकार संस्थान कहा है - १- परिमंडल, २- वृत्त, ३- त्रिकोण, ४- चतुष्कोण और ५- आयत । (४८) मंडलावस्थिताण्बोधं बहिः शुषिरमन्तरे । वलयस्येव तद् ज्ञेयं संस्थानं परिमंडलम् ॥४६॥ परमाणुओं का समूह बाहर के विभाग में मंडल के समान हो और वलय के समान बीच में खाली हो, उस संस्थान को परिमंडल संस्थान कहते हैं । (४६) .. अंतःपूर्ण तदेव स्यात् वृत्तं कुलाल चक्रवत् । त्र्यस्त्रं श्रृंगाटवत् कुम्भिकादिवच्चतुरस्रकम् ॥५०॥ आयतं दण्डवत् दीर्घ घनप्रतर भेदतः । चत्वारि स्युर्द्विधा संस्थानानि प्रत्येकमादितः ॥५१॥ . इसमें यदि बीच में कुलाल के चक्र के समान परमाणुओं से भरा हुआ हो तो वृत्त.संस्थान कहलाता है तथा जो सिंघाड़े के समान हो वह त्रिकोण संस्थान है, कुंभिका समान हो तो चतुष्कोण संस्थान है और दण्ड समान आयत- दीर्घ हो तो आयत संस्थांन कहलाता है। पहले चार प्रकार के संस्थान के १. बन्धन और २. प्रतर - इस तरह दो-दो भेद हैं । (५०-५१) . आयतं तु त्रिधा श्रेणि घनप्रतर भेदतः । ओज युग्ध प्रदेशानि द्वेधामूनिविनादिमम् ॥५२॥ ओज प्रदेशं प्रतरवृत्तं पंचाणु सम्भवम् । पंचाकाश प्रदेशवगाढं च परिकीर्तितम् ॥५३॥ और पांचवां प्रकार जो आयात है उसके तीन भेद हैं - १. श्रेणि, २. घन और ३. प्रतर । परिमंडल के बिना अन्य चार प्रकार के संस्थान के ओज प्रदेशी और युग्म प्रदेशी दो भेद होते हैं । ओज प्रदेशी प्रतरवतृत्त पांच परमाणु का बना . और पांच आकाश प्रदेश अवगाही रहा हुआ है । (५३) - यत्र प्रदेशाश्चत्वारश्चतुर्दिशं प्रतिष्ठिताः । एक प्रदेशोऽन्तर् वृत्तप्रत्तरं तद्यथो दितम् ॥५४॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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