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________________ (५७०) अन्यत्र कहा है कि- अन्त्य कारण रूप ही परमाणु है यह परमाणु नित्य है, सूक्ष्म है तथा एक रस वाला है, एक वर्ण वाला है, एक गन्ध वाला है, यद्यपि इसके स्पर्श दो है और इस कार्य के लिंग रूप अर्थात् कार्यानुमेय हैं । (१२) तत्रापि- शीतोष्णस्निग्धरूक्षेषु द्वौ चतुर्व विरोधनौ । । स्पर्शो स्यातां परमाणुष्वपरे न कथंचन ॥१३॥ इसके जो दो स्पर्श कहे हैं वे शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष - इन चार में से परस्पर अविरोधी कोई दो समझना, अन्य नहीं होते हैं । (१३) .' "तथाहुः । परमाणवादीनाम संख्यात् प्रदेशक स्कन्ध पर्यन्तानां केषां चिदनन्त प्रादेशिका नामपि स्कन्धानां तथा एक प्रदेशावगाढानां यावत्संख्यात प्रदेशाव-गाढ़ानां शीतोष्णस्निग्ध रुक्षरूपाश्चत्वार एव स्पर्शा इति प्रज्ञापनावृत्तौ ॥" "श्री पन्नवणा सूत्र की वृत्ति में कहा है कि - असंख्य प्रदेश, स्कंध तक के परमाणु आदि को तथा कई अनन्त प्रदेशी, स्कन्धों को तथा एक प्रदेश के अवगाह वाले से लेकर अन्तिम संख्यात प्रदेश के अवगाह वाले को शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष - इस तरह चार ही स्पर्श होते हैं।" द्रव्य क्षेत्र काल भावैः परमाणुश्चतुर्विधः । द्रव्यतोऽणु पुद्गलाणुश्चतुर्लक्षण एव सः ॥१४॥ अवाह्योऽग्राह्य एवासावभेद्योऽच्छेद्य एव च ।। क्षेत्राणुस्त्वभ्रमदेशश्चतुर्लक्षण एव साः ॥१५॥ अप्रदेशोऽविभागश्चामध्योऽनर्घ इति स्मृतः । . . कालाणुः समयाख्यः स्याच्चतुलक्षण एव सा ॥१६॥ . द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव - इस तरह चार को लेकर परमाणु के चार भेद होते हैं । १. द्रव्य को लेकर जो पहला भेद है अर्थात् द्रव्याणु, इसके चार लक्षण हैं- अवाह्य, अभेद्य और अच्छेद्य । २- अध्रप्रदेश रूप क्षेत्राणु के भी चार लक्षण हैंअप्रदेशी, अविभागी, अमध्य और अनर्घ । ३- समयाख्य कालाणु के भी चार लक्षण हैं । (१४ से १६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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