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________________ (५५२) इस तरह नामकर्म की एक सौ तीन प्रकृतियां होती हैं, और अन्य कर्मों की पचपन प्रकृतियां मिलाकर कुल १५८ प्रकृतियां सत्ता में गिनी जाती हैं । (२०८) चेत् बन्धनानि पंचैव विवक्ष्यन्ते तदा पुनः । अष्ट चत्वारिंश शतं, सत्तायां कर्मणामिद : ॥२०६॥ . इसमें भी यदि बन्धन पांच ही गिने जायं तो एक सौ अड़तालीस प्रकृतियां सत्ता में रहती हैं । (२०६) नामकर्म प्रकृतीनामथै तासां निरूप्यते । .. प्रयोजनं गुरु प्रान्ते समीक्ष्य समयोदधिम् ॥२१०॥ इस तरह गुरु महाराज के पास सिद्धान्त की समीक्षा कर के इस नाम कर्मः .. प्रकृतियां का प्रयोजन इसी तरह समझाने में आया है । (२१०) चतुर्यो गतिनामभ्यः प्राप्तिः स्व स्वगतेर्भवेत् । पंचभ्यो जातिनामभ्योऽप्येकद्वयाद्यक्षता भवेत् ॥२११॥ चार गति नामकर्म हैं, इनसे अपनी अपनी गति की प्राप्ति होती है। पांच जाति नामकर्म हैं, इनसे एकेन्द्रियत्व, द्वीन्द्रियत्व आदि की प्राप्ति होती है । (२११) पंचानां वपुषां हेतुः स्याद्वपुर्नाम पंचधा । औदारिक वैक्रियाहारकांगोपांग साधनम् ॥२१२॥ पांच शरीर नामकर्म हैं । ये पांच शरीर का हेतुभूत हैं और औदारिक वैक्रिय और आहारक अंगोपांगों के साधन बनाने वाला है । (२१२) विधांगोपांगनाम् स्यात् बन्धनानि च पंचधा । स्युः पंचदशवांगानां मिथः सम्बन्ध हेतवः ॥२१३॥ . . तीन प्रकार का अंगोपांग नामकर्म है और पांच प्रकार के अथवा पंद्रह प्रकार के बन्धन, ये सभी अंगों परस्पर के सम्बन्ध के हेतुभूत हैं । (२१३) असस्तु बन्धनेष्वेषु संघात नामकर्मणा । संहृतानां पुद्गलानां बन्धो न घटते मिथः ॥२१४॥ सक्तूनां संगृहीतानां यथा पत्रकरादिना । घृतादिश्लेषणद्रव्यं बिना बन्धो मिथो न हि ॥१५॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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