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________________ (२१) असंख्यात, २- मध्यम परीत्त असंख्यात, ३- उत्कृष्ट परीत्त असंख्यात, ४- जघन्य युक्त असंख्यात, ५- मध्यमयुक्त असंख्यात, ६- उत्कृष्टयुक्त असंख्यात, ७- जघन्य असंख्य असंख्यात, ८- मध्यम असंख्य असंख्यात और ६- उत्कृष्ट असंख्य असंख्यात्। इस असंख्यात के नौ भेद हैं । १- जघन्य परीत्त अनन्त, २- मध्यम परीत्त अनन्त, ३- उत्कृष्ट परीत्त अनन्त, ४- जघन्य युक्त अनन्त, ५- मध्यम युक्त अनन्त, ६- उत्कृष्ट युक्त अनन्त, ७ - जघन्य अनन्त अनन्त,८- मध्यम अनन्त अनन्त,६उत्कृष्ट अनंत अनन्त । ये अनन्त के नौ भेद हैं। इस तरह कुल २१ भेद होते हैं। (१२६) द्वावेव लघु संख्यातं त्र्यादिकं मध्यमं ततः । अर्वागुत्कृष्ट संख्यातात् नैकस्तु गणना भजेत् ॥१२७॥ इस तरह दो संख्या जघन्य संख्यात् है, उत्कृष्ट संख्यात से पहले का तीन आदि संख्या वाला मध्यम संख्यात है, एक की संख्या की गिनती की गणना नहीं करते हैं । (१२७) . . . यत्तु संख्यातमुत्कृष्ट तत्तु ज्ञेयं विवेकिभिः । चतुष्पल्याद्युपायेन सर्षपोत्कर मानतः ॥१२८॥ संख्यात का तीसरा भेद जो उत्कृष्ट संख्यात है उसको समझने के लिए चार पाला और सरसों की रहस्यपूर्ण बातें आगे कहते हैं । (१२८) वह इस प्रकार है : जम्बूद्वीप समायाम विष्कम्भपरि वेषकाः । सहस्रयोजनो द्वधाः पल्याश्चत्त्वार ईरित्ता ॥१२६॥ . उच्चया योजनान्यष्टौ जगत्या ते विराजिताः । जगत्युपरि च क्रोश द्वयोच्च वेदिकाञ्चिता ॥१३०॥ दिदृक्षवो द्वीपवार्थीन् स्वीकृतोद् ग्रीविका इव । ध्यायन्तो ज्येष्ट संख्यातं योगपट्ट भृतोथवा ॥१३१॥ त्रिभि विशेषकम् जम्बूद्वीप के समान लाख योजना लम्बा-चौड़ा घिराव वाले तथा एक हजार योजन गहरे चार पाल कहे है । वे प्रत्येक आठ योजन उँची शोभायमान 'जगती' हैं और उस दीवारं जगती के ऊपर दो कोस सुन्दर वेदिकाएं हैं । इसके कारण से पाल मानो द्वीप और समुद्र को ऊँची गरदन करके देख रहे हो इस तरह अथवा. उत्कृष्ट संख्यात का विचार करते 'योगपट्टधारी' (योगपट्ट-एकाग्र ध्यान में हो तब
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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