SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५२६) उत्कृष्टायुर्भूमिकायोऽनुत्कृष्टायुष्क वारिषु । ___ उत्पद्यमानोऽप्युत्कर्षाद्भवानष्टैव पूरयेत् ॥५६॥ उत्कृष्ट आयुष्य वाला पृथ्वीकाय जघन्य आयुष्य वाले. अपकाय के अन्दर उत्पन्न होकर भी उत्कृष्टतः आठ जन्म धारण करता है । (५६) एवं भूकायिकोऽनुत्कृष्टायुरुत्कृष्ट जीविषु । उद्भवन्नम्बुषूत्कर्षात् स्यादष्ट भव पूरकः ॥५७॥ इसी तरह से जघन्य आयुष्य वाला पृथ्वीकाय उत्कृष्ट आयुष्य वाले अपकाय के अन्दर उत्पन्न होकर उत्कृष्टतः आठ जन्म धारण करता है । (५७) अप्पकायादि नामपीत्थं विकलानां च भाव्यताम् । भवाष्टकात्मा संवेधो ज्येष्ठायुभंगकत्रये ॥५८॥ इसी प्रकार उत्कृष्ट आयुष्य वाले तीन विभाग के अन्दर अपकाय आदि का और विकलेन्द्रियों का आठ जन्म सम्बन्धी भवसंवेध जान लेना । (५८) _ अनुत्कृष्टायुषां त्वेषां स्यादनुत्कृष्ट जीविषु । ___संवेद्यः प्रागुक्त एवासंख्य संख्य भवात्मक ॥५६॥ .. और जघन्य आयुष्य वालों का जघन्य आयुष्य वाले के अन्दर पूर्व में जैसा कहा है उसी के अनुसार असंख्यात जन्मरूप तथा संख्यात जन्मरूप भवसंवेद्य होता है। (५६) : .. 'पृथ्व्यादीनाम् असंख्य भवात्मकः विकलानामसंख्य भवात्मकः' इति । कहने का भावार्थ यह है कि 'पृथ्वीकाय आदि का असंख्यात जन्म और विकलेन्द्रियों का संख्यात जन्मरूप भवसंवेध होता है।' क्ष्मादयो विकलाक्षाश्च जघन्यतो भव द्वयम् । कुर्यः ज्येष्ठक निष्ठायुरूपे भंग चतुष्टये ॥६०॥ उत्कृष्ट और जघन्य आयु रूप चार विभागों में पृथ्वीकाय आदि व विकलेन्द्रिय जघन्य दो जन्म लेते हैं । (६०) .. युग्मिवर्जाश्च मनुजास्तिर्यंचः संज्यसंज्ञिनः । प्रत्येकं जायमानाः स्युर्मिथोऽष्ट भवपूरकाः ॥६१॥ युग्मी के अलावा मनुष्य तथा संज्ञी और असंज्ञी तिर्यंच परस्पर में उत्पन्न होकर उत्कृष्ट आठ जन्म धारण करते हैं । (६१)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy