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________________ (४६३) महे वक्षा मेरु कान्ता महावेगा मनोरमाः । सर्वेऽप्यमी महावेगा महांगाश्चित्र भूषणाः ॥४६॥ इसी तरह महोरग के भी दस भेद होते हैं- भुजग, भोगशाली, महाकाय, अतिकाय, भास्वंत, स्कंधशाली, महेश्वक्ष, मेरुकांत, महावेग और मनोरम । ये सब महावेग वाले होते हैं, महान् शरीर वाले होते हैं और शरीर पर चित्र-विचित्र आभूषण धारण करते हैं। (४५-४६) गन्धर्वा द्वादशविधाः सुस्वराः प्रियदर्शनाः । सरूपा मौलिमुकुटधरा हार विभूषणाः ॥४७॥ हाहा हूहू तुम्बरवो नारदा ऋषि वादिकाः । भूत वादिककादम्बा महाक दम्बरैवताः ॥४८॥ विश्वावसु गीत रति सद्गीत यशसस्तथा । सप्ताशीतिरिमे सर्वे तृतीयांगेऽष्ट तेत्वमी ॥४६॥ गन्धर्व के बारह प्रकार होते हैं- हाहा, हूहू, तुम्बरू, नारद, ऋषि वादक, भूत वादक, कदम्ब, महाकदम्ब; रैवत, विश्वावसु, गीत रति और सद्गीतयश । इनका सुन्दर स्वर है, प्रिय दर्शन है, उत्तम रूप है । ये मस्तक पर मुकुट और गले में हार धारण करते हैं। इस प्रकार से व्यन्तर जाति के देव की भेद प्रभेद को लेकर सत्तासी जाति होती हैं और तीसरे अंग के विषय में जो आठ भेद कहे हैं वह इस प्रकार। (४७-४६) . .अणपनी पणपन्नी इसीवाई भूअवाइए चेव । कंदी य महाकंदी कोहंडे चेव पयए य ॥५०॥ अणपन्नी, पणपन्नी, ऋषिवादी, भूतवादी, कंदी, महाकंदी, कुष्मांड और पतंग ये आठ भेद हैं। (५०) तथा....... अन्नपान वस्त्र वेश्म शय्यापुष्प फलोभये । येऽल्पानल्पत्व सरस विरसत्वादि कारकाः ॥५१॥ अन्नादि जृम्भकास्तेऽष्टौ स्युविद्याजृम्भकाः परे । येत्वनाद्य विभागेन जृम्भन्तेऽव्यक्त जृम्भकाः ॥५२॥ तथा अन्न, पान, वस्त्र, वसति, शय्या, पुष्प और फल- इन वस्तुओं की कमी होती हो तो पूर्ण करने वाले और कम रसवाली हो तो रस भर कर पूर्ण करने वाला एक प्रकार का देव होता है जो मुंभक जाति का देव कहलाता है । इनके भी
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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